Chief Justice DY Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने अंतिम फैसले में उत्तर प्रदेश में हुई बुलडोज़र कार्रवाई की कड़ी आलोचना की और कहा कि “बुलडोज़र से न्याय” किसी भी न्यायिक प्रणाली का हिस्सा नहीं हो सकता। उन्होंने यह टिप्पणी महाराजगंज, उत्तर प्रदेश में बुलडोज़र के जरिए की गई कार्रवाई के संबंध में दी, जो सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच द्वारा सुनवाई के दौरान आई। यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, जहां लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के प्रति न्यायपालिका ने अपनी मजबूत स्थिति जाहिर की है।
बुलडोज़र से न्याय अस्वीकार्य: मुख्य न्यायाधीश का स्पष्ट संदेश
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था में बुलडोज़र से न्याय नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि यह न केवल संविधान की अवहेलना है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के खिलाफ भी है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों को अवैध कब्जों को हटाने के लिए कानून के तहत सही प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, न कि किसी के घरों को बुलडोज़र से नष्ट कर देना।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 300A का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी की संपत्ति को बुलडोज़र से नष्ट किया जाता है, तो इससे संविधान में संपत्ति के अधिकार की रक्षा करने वाले अनुच्छेद 300A का उल्लंघन हो सकता है। अनुच्छेद 300A यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधिक प्राधिकरण के बिना वंचित नहीं किया जा सकता। चंद्रचूड़ का यह निर्णय संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के मजबूत रुख को स्पष्ट करता है।
मुआवजा आदेश: 25 लाख रुपये का भुगतान
मुख्य न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, “आप लोग लोगों के घरों को इस तरह क्यों तोड़ रहे हैं?” उन्होंने कहा कि बिना किसी उचित कानूनी प्रक्रिया के घरों को नष्ट करना पूरी तरह से मनमाना है। इसके साथ ही उन्होंने निर्देश दिया कि जिन लोगों के घर इस कार्रवाई में नष्ट हुए हैं, उन्हें 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। यह फैसला यह दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट केवल कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की बात नहीं करता, बल्कि नागरिकों के अधिकारों और न्याय की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से कार्य करता है।
चंद्रचूड़ का कार्यकाल समाप्त: न्यायपालिका के लिए ऐतिहासिक योगदान
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल आज सुप्रीम कोर्ट से समाप्त हो रहा है। उन्होंने 9 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी और अब उनके स्थान पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है। चंद्रचूड़ के कार्यकाल में उन्होंने न्यायिक सुधारों, नागरिक स्वतंत्रताओं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। उनका यह अंतिम निर्णय, जिसमें उन्होंने बुलडोज़र से न्याय को नकारा और संविधान की रक्षा की, उनके पूरे कार्यकाल का प्रतिबिंब है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए कई अहम फैसले लिए। उनका यह अंतिम निर्णय यह दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह की हिंसा और अराजकता से न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया को अस्वीकार किया है। यह संदेश भारतीय न्यायपालिका के पक्ष से साफ है कि वह निष्पक्ष और सटीक निर्णय देने के लिए प्रतिबद्ध है, और वह किसी भी गलत प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करेगी।
चंद्रचूड़ का यह फैसला इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय न्यायपालिका लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सख्त रुख अपनाएगी। उनका यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखते हुए समाज के हर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करेगी।
चंद्रचूड़ का योगदान: एक न्यायिक सुधारक के रूप में
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का कार्यकाल हमेशा याद रखा जाएगा क्योंकि उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका योगदान न्यायपालिका के लिए सुधारक के रूप में देखा जाएगा, जिन्होंने कई जटिल मामलों में संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा की। उनका कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के लिए एक स्वर्णिम युग के रूप में दर्ज होगा, जिसमें उन्होंने हर नागरिक के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई।
उनके फैसलों ने लोकतंत्र की ताकत को बनाए रखने में मदद की है और न्यायपालिका को समाज के हर वर्ग के लिए एक निष्पक्ष और मजबूत संस्था के रूप में स्थापित किया। चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बचाने के लिए हमेशा सख्त रुख अपनाया।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का यह बयान और उनका रिटायरमेंट भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। उनका यह अंतिम निर्णय यह संदेश देता है कि भारतीय न्यायपालिका किसी भी गलत प्रक्रिया या असंवैधानिक कृत्य को स्वीकार नहीं करेगी। यह निर्णय लोकतंत्र और कानून के सिद्धांतों के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता का प्रतीक है, और यह दर्शाता है कि न्याय व्यवस्था में किसी भी तरह की हिंसा और अराजकता का स्थान नहीं हो सकता।