
Waqf Amendment Bill: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की आधिकारिक मंजूरी मिल गई है, जिसका कई राजनीतिक नेताओं और संगठनों ने कड़ा विरोध किया है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका दावा है कि इस संशोधन में न केवल बड़ी प्रक्रियागत कमियाँ हैं, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।
मोइत्रा ने संसदीय प्रक्रियाओं के उल्लंघन का आरोप लगाया
9 अप्रैल को दायर अपनी याचिका में महुआ मोइत्रा ने तर्क दिया है कि विधेयक पारित करने में अपनाई गई विधायी प्रक्रिया में खामियां थीं। उनके अनुसार, संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष ने मसौदा रिपोर्ट पर विचार और अनुमोदन के दौरान स्थापित संसदीय मानदंडों का उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विपक्षी सांसदों की असहमतिपूर्ण राय को बिना कोई स्पष्टीकरण दिए 13 फरवरी, 2025 को संसद में पेश की गई अंतिम रिपोर्ट से अनुचित तरीके से हटा दिया गया।

अन्य राजनीतिक नेताओं ने भी अधिनियम को चुनौती दी
Waqf Amendment Bill को चुनौती देने वाली महुआ मोइत्रा अकेली नहीं हैं। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क ने भी अलग-अलग याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। कुल मिलाकर, अधिनियम का विरोध करने वाली कम से कम दस याचिकाएँ दायर की गई हैं। इन सभी मामलों को अब 16 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

व्यापक विरोध और योजनाबद्ध विरोध प्रदर्शन
नए वक्फ कानून की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई पक्षों ने आलोचना की है। बोर्ड ने इस अधिनियम के खिलाफ एक विस्तृत विरोध अभियान की घोषणा की है, जिसमें दावा किया गया है कि यह मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कमजोर करता है। कानूनी चुनौतियों के लंबित होने और सार्वजनिक विरोध की योजना के साथ, आने वाले हफ्तों में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर बहस तेज होने की उम्मीद है।

