
Supreme Court ने मंगलवार (25 मार्च) को तेलंगाना के ‘टर्नकोट’ नेताओं की अयोग्यता से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र के नेताओं पर तंज कसा। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र ने हाल के वर्षों में ‘आया राम, गया राम’ की परंपरा में सभी राज्यों को पछाड़ दिया है। कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य में राजनीतिक उठापटक के कारण यह परंपरा और भी बढ़ गई है।
महाराष्ट्र की राजनीति में उलटफेर:
Supreme Court की बेंच ने जस्टिस भूसन आर. गवई और ए.जी. मसिह की मौजूदगी में यह टिप्पणी की। बेंच तेलंगाना में तीन बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) विधायकों द्वारा कांग्रेस में शामिल होने के मामले की सुनवाई कर रही थी। इन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की गई थी। इस सुनवाई के दौरान बेंच ने यह कहा कि भारतीय संविधान का दसवां अनुच्छेद (10th Schedule), जो राजनीतिक पलायनवाद को रोकने के लिए है, अब अप्रभावी हो गया है क्योंकि इन मामलों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

कोर्ट ने कहा, “आया राम, गया राम” परंपरा पहले पंजाब और हरियाणा से शुरू हुई थी, लेकिन हाल के वर्षों में महाराष्ट्र ने इस मामले में सभी राज्यों को पछाड़ दिया है। बेंच ने आगे कहा कि दसवें अनुच्छेद का उद्देश्य ‘आया राम, गया राम’ को रोकना था, और यदि कोर्ट इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं तो यह अनुच्छेद मजाक बनकर रह जाएगा।

आया राम, गया राम की उत्पत्ति:
‘आया राम, गया राम’ यह वाक्य भारतीय राजनीति में एक प्रसिद्ध मुहावरा बन चुका है। इसका संबंध हरियाणा के विधायक गया लाल से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने 1967 में एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी। इस घटना के बाद राजनीतिक दुनिया में नेताओं के पार्टी बदलने की परंपरा बढ़ गई, जिससे कई बार राज्य सरकारें गिर चुकी थीं। इसी समस्या को रोकने के लिए संसद ने 1985 में एक कानून बनाया, जिसे ‘प्रतिनिधित्व अधिनियम’ के तहत अयोग्यता के कानून के रूप में लागू किया गया। इस कानून के तहत, यदि कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी बदलता है तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसे आमतौर पर ‘एंटी-डिफेक्शन लॉ’ (Anti-defection law) के नाम से जाना जाता है।
तेलंगाना के BRS विधायकों की अयोग्यता याचिका:
सुप्रीम कोर्ट में जो मामला सुना जा रहा था, वह तेलंगाना के तीन बीआरएस विधायकों से जुड़ा था। इन विधायकों का नाम तेलम वेणकट राव, कदियाम श्रीहरी और दानम नागेन्द्र था, जो बीआरएस पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इनमें से एक विधायक ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, जबकि वह बीआरएस के विधायक थे। इन तीनों विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की याचिका दायर की गई थी और इनकी विधानसभा सीटों पर फिर से चुनाव कराने की मांग की गई थी।
महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक:
महाराष्ट्र में पिछले कुछ वर्षों में कई बार राजनीतिक उलटफेर हो चुके हैं। मई 2022 में शिवसेना के विभाजन के बाद, एकनाथ शिंदे और 38 अन्य विधायकों ने उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली शिवसेना को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का समर्थन किया और नई सरकार बनाई। इसके बाद, राकांपा (NCP) के नेता अजित पवार ने भी ऐसा ही किया और सरकार में शामिल हो गए। यह घटनाएं यह दिखाती हैं कि महाराष्ट्र में सत्ता की राजनीति में किस तरह बदलाव आ रहे हैं और पार्टी बदलने का सिलसिला तेज हो रहा है।
10वें अनुच्छेद का महत्व:
संविधान के दसवें अनुच्छेद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि संसद और राज्य विधानसभाओं में पार्टी बदलने वाले विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए ताकि राजनीतिक स्थिरता बनी रहे। इस अनुच्छेद के तहत, यदि कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है, तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह था कि विधायक अपनी पार्टी की नीतियों के खिलाफ न जाकर केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए पार्टी न बदलें।
लेकिन, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजे फैसले में बताया, राजनीतिक दलों और नेताओं के बीच लगातार पार्टी बदलने की घटनाओं से यह कानून कमजोर पड़ता जा रहा है। यदि इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती तो यह कानून केवल कागज पर रह जाएगा।
Supreme Court की भूमिका:
Supreme Court ने इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से कहा कि यदि अदालतें इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करतीं, तो संविधान के इस महत्वपूर्ण प्रावधान का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। राजनीतिक दलों द्वारा किए गए इस तरह के कारनामे लोकतंत्र की स्वस्थ प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं और जनता के विश्वास को कमजोर करते हैं। कोर्ट का यह भी कहना था कि इसे एक मजाक नहीं बनने दिया जा सकता और इसलिए अदालतों को इन मामलों में कार्रवाई करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारतीय राजनीति में चल रहे नेताओं के बार-बार पार्टी बदलने की स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में हो रहे राजनीतिक उलटफेर से यह स्पष्ट होता है कि राजनीति में स्थिरता बनाए रखने के लिए अधिक प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। ‘आया राम, गया राम’ की परंपरा को रोकने के लिए संविधान में किए गए सुधारों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है ताकि लोकतंत्र की प्रणाली स्वस्थ और प्रभावी बनी रहे।

