
Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुई, जब यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक अत्यधिक जहरीली गैस का रिसाव हुआ। यह दुर्घटना दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में गिनी जाती है, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग स्थायी रूप से प्रभावित हुए। इस त्रासदी से उत्पन्न जहरीले कचरे का निपटान आज भी एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। हाल ही में, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ए. जी. मसीह शामिल थे, ने 4 जुलाई 2024 को यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को मध्य प्रदेश के धार जिले के पिथमपुर क्षेत्र में स्थानांतरित करने के मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने इस कचरे के निपटान को रोकने की मांग को भी खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI), राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) जैसे विशेषज्ञ संस्थानों की राय को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और विशेषज्ञ पैनल द्वारा पहले ही जांचा जा चुका है। अदालत ने प्रभावित पक्षों से अपील की कि यदि उन्हें कोई आपत्ति हो तो वे हाई कोर्ट में अपनी बात रखें।

भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ। इस जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 5,479 लोगों की मौत हुई थी, जबकि गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक यह संख्या 15,000 से अधिक हो सकती है। इसके अलावा, लगभग पांच लाख लोग गैस रिसाव से प्रभावित हुए थे, जिनमें से कई आज भी विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं।
इस दुर्घटना से हुए नुकसान में शामिल हैं:
- हजारों लोगों की तत्काल मृत्यु
- लाखों लोगों को अस्थमा, फेफड़ों की बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ
- जन्मजात विकृतियाँ और अन्य दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ
- पर्यावरणीय प्रदूषण, जिससे भोपाल के कई इलाकों में पानी और मिट्टी दूषित हो गई
ज़हरीले कचरे का निपटान: एक बड़ा मुद्दा
भोपाल गैस त्रासदी के दौरान उत्पन्न हुआ ज़हरीला कचरा दशकों से एक गंभीर समस्या बना हुआ है। करीब 377 टन खतरनाक अपशिष्ट यूनियन कार्बाइड के पुराने संयंत्र में पड़ा हुआ था। इसे अब धार जिले के पिथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित कर नष्ट करने की योजना बनाई गई है।
पिथमपुर कहाँ है?
पिथमपुर, इंदौर से करीब 30 किमी और भोपाल से 250 किमी की दूरी पर स्थित है। इसे औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ कई कारखाने और प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र हैं।
हालांकि, इस कचरे के निपटान को लेकर स्थानीय नागरिकों और पर्यावरणविदों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यदि इस कचरे का सुरक्षित तरीके से निपटान नहीं किया गया तो यह स्थानीय पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है।
पर्यावरणीय चिंताएँ और सामाजिक विरोध
कई पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का विरोध किया है। उनका कहना है कि यूनियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा पहले ही भोपाल के जल और मिट्टी को दूषित कर चुका है, और अब यदि इसे अनुचित तरीके से नष्ट किया गया तो यह पिथमपुर क्षेत्र के लिए भी गंभीर खतरा साबित हो सकता है।
विरोध करने वालों की मुख्य चिंताएँ हैं:
- पर्यावरण प्रदूषण: यदि कचरे को सही तरीके से नष्ट नहीं किया गया, तो यह हवा, मिट्टी और पानी को दूषित कर सकता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: जहरीले कचरे से निकले विषाक्त तत्वों से स्थानीय निवासियों को फेफड़ों की बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
- सुरक्षा उपायों की कमी: क्या सरकार ने इसके सुरक्षित निपटान के लिए पर्याप्त उपाय किए हैं? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रुख
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों के आधार पर ज़हरीले कचरे को पिथमपुर में स्थानांतरित करने और वैज्ञानिक तरीके से नष्ट करने का आदेश दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञ संस्थानों की राय के आधार पर ही यह फैसला लिया गया है, इसलिए इसमें कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। अदालत ने प्रभावित पक्षों से अपील की कि वे हाई कोर्ट में अपनी आपत्तियाँ दर्ज कराएँ।
भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान
भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े मामलों में न्यायिक प्रक्रिया बहुत धीमी रही है। त्रासदी के पीड़ितों को उचित मुआवजा और स्वास्थ्य सुविधाएँ देने में भी सरकारें सफल नहीं रही हैं। अब ज़हरीले कचरे के निपटान का मुद्दा भी एक गंभीर चुनौती बन गया है।
आगे क्या किया जाना चाहिए?
- सुरक्षित निपटान: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ज़हरीले कचरे को वैज्ञानिक तरीके से नष्ट किया जाए।
- स्वास्थ्य सुविधाएँ: प्रभावित इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाया जाए।
- निगरानी तंत्र: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निगरानी बढ़ानी चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को रोका जा सके।
- पारदर्शिता: सरकार को इस मुद्दे पर पारदर्शी नीति अपनानी चाहिए ताकि जनता को सही जानकारी मिल सके।
भोपाल गैस त्रासदी भारत की औद्योगिक लापरवाही का सबसे बड़ा उदाहरण है। दशकों बाद भी इस त्रासदी के पीड़ित न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसके प्रभावों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
सरकार, विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि इस कचरे का वैज्ञानिक और सुरक्षित निपटान हो, ताकि भविष्य में कोई नई त्रासदी न हो। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह त्रासदी केवल इतिहास का हिस्सा नहीं रहेगी, बल्कि इसकी छाया भविष्य पर भी बनी रहेगी।

