
India-US Relation: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सोमवार को एक फोन वार्ता हुई। यह बातचीत ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली बातचीत थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने तकनीकी, व्यापार, निवेश, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों की प्रगति पर चर्चा की। इस वार्ता के दौरान ट्रंप ने खासकर रक्षा क्षेत्र पर ज्यादा जोर दिया। ट्रंप का कहना था कि वे चाहते हैं कि भारत और अधिक हथियार अमेरिका से खरीदे।
भारत और रूस के रक्षा संबंध

भारत वर्तमान में अधिकतर हथियार रूस से खरीदता है, लेकिन अब रूस पर निर्भरता कम करने के लिए भारत अन्य देशों से भी रक्षा सौदे कर रहा है। अमेरिका इस स्थिति को अच्छी तरह से समझता है और चाहता है कि भारत अब रूस की जगह अमेरिका से सैन्य उपकरण खरीदे। ट्रंप ने अपनी पहली बार की विदेश नीति में भी इस बात पर जोर दिया था कि अमेरिकी रक्षा निर्यात को प्राथमिकता दी जाए और भारत जैसे प्रमुख देशों से द्विपक्षीय सैन्य समझौतों को बढ़ावा दिया जाए।

भारत कैसे रूस से सबसे बड़ा आयातक बना?
1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद भारत ने हथियारों के लिए सोवियत संघ की ओर रुख किया। 90 के दशक तक भारतीय सेना के लगभग 70 प्रतिशत, वायुसेना के 80 प्रतिशत और नौसेना के 85 प्रतिशत हथियार सोवियत संघ से आयात किए जाते थे। भारत ने 2004 में अपनी पहली विमानवाहक पोत INS विक्रमादित्य रूस से खरीदी थी। यह पोत पहले सोवियत संघ और फिर रूस की नौसेना का हिस्सा था।
भारत के पास रूस से खरीदी गई सैन्य सामग्री
वर्तमान में भारतीय वायुसेना के पास 410 से अधिक सोवियत और रूसी फाइटर जेट हैं, जिसमें आयातित और लाइसेंस से निर्मित प्लेटफॉर्म शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय सेना के पास रूसी निर्माण के टैंक, हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियां, मिसाइलें और फ्रिगेट भी शामिल हैं। हालांकि, भारत अब रूस पर निर्भरता कम कर रहा है और अपनी रक्षा खरीद में विविधता ला रहा है। हाल के वर्षों में भारत ने अमेरिका, इजराइल, फ्रांस और इटली जैसे देशों से सैन्य उपकरण खरीदे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद भारत को रूस से अपनी निर्भरता समाप्त करने में लगभग 20 साल लग सकते हैं।
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका रक्षा सौदे
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका रक्षा सौदे 15 अरब डॉलर से अधिक बढ़े थे। इनमें MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, AH-64E अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर और P-8I मरीन पेट्रोल विमान जैसे महत्वपूर्ण सौदे शामिल थे। अमेरिका ने 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार घोषित किया था। अमेरिकी संसद के अनुसार, 2008 से 2023 तक भारत ने दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार आयात किए। इस दौरान दुनिया भर में खरीदी गई 10 प्रतिशत हथियारों को केवल भारत ने खरीदा। रूस से भारत के 62 प्रतिशत हथियार आते हैं, जबकि फ्रांस (11%), अमेरिका (10%) और इजराइल (7%) इसके बाद आते हैं।
भारत और अमेरिका के बीच नए रक्षा सौदे
इसी रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अमेरिका से 28 AH-64 अपाचे हेलीकॉप्टर, 1354+AGM-114 हेल्फायर एंटी-टैंक मिसाइल, 245 स्टिंगर पोर्टेबल मिसाइल, 12APG-78 लॉन्गबो हेलीकॉप्टर राडार, 6 हेलीकॉप्टर टर्बोशाफ्ट, 15 CH-47 चिनूक ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर, 13 C-130 हरक्यूलिस विमान, 11C-17 ग्लोबमास्टर विमान और 2 MQ-9A रीपर UAV जैसे उपकरण खरीदे हैं। इनमें से कई सैन्य उपकरण पहले ही भारत को दिए जा चुके हैं।
अगर हम समुद्री हथियारों की बात करें तो भारत ने 1 ऑस्टिन क्लास ट्रांसपोर्ट डॉक, 24 MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, 12 P-81 पोसाइडन पैट्रोल और एंटी-सबमरीन विमान, 6 S-61 सी किंग ASW हेलीकॉप्टर, 53 हारपून एंटी-शिप मिसाइल और 24 नौसैनिक गैस टरबाइनों का सौदा किया है।
भारत-रूस रिश्ते में बदलाव और अमेरिकी निर्यात का दबाव
भारत अब धीरे-धीरे रूस से अपनी सैन्य आपूर्ति में कमी कर रहा है और अमेरिका, इजराइल, फ्रांस, इटली जैसे देशों से नए रक्षा सौदे कर रहा है। अमेरिका भारत को रूस पर निर्भरता कम करने के लिए लगातार प्रेरित कर रहा है। अब देखना यह है कि ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका रक्षा क्षेत्र में और कितने नए सौदे होते हैं और क्या रूस को इन बदलावों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सौदों का बढ़ता हुआ संबंध रूस के लिए एक चुनौती बन सकता है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुए समझौतों से यह साफ जाहिर होता है कि अमेरिका भारत को अपनी सैन्य आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बनाना चाहता है। इस दिशा में भारत को रूस से अपनी निर्भरता को समाप्त करने के लिए काफी समय लगेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि रक्षा क्षेत्र में भारत और अमेरिका के रिश्ते मजबूत हो रहे हैं।

