
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के 28 बीजेपी नेताओं को राहत देते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। यह एफआईआर 11 अप्रैल 2023 को रांची में हुए सचिवालय मार्च के दौरान पुलिस से हुई झड़प के मामले में दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस मामले में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
हाई कोर्ट ने पहले ही बताया था गैरजरूरी
झारखंड हाई कोर्ट ने 14 अगस्त 2024 को इस एफआईआर को गैरजरूरी बताते हुए निरस्त कर दिया था। इसके बाद झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार की इस अपील को खारिज करते हुए कहा कि धारा 144 का बार-बार इस्तेमाल करना सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने झारखंड सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि धारा 144 का दुरुपयोग करना एक गलत प्रवृत्ति है। कोर्ट ने कहा, “जब कोई आंदोलन करना चाहता है, तो प्रशासन तुरंत धारा 144 लागू कर देता है। यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।”

कौन-कौन से नेता थे शामिल?
इस मामले में राहत पाने वाले नेताओं में अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, दीपक प्रकाश, निशिकांत दुबे, संजय सेठ, सीपी सिंह जैसे वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इन नेताओं पर सरकारी काम में बाधा डालने, दंगा भड़काने और सरकारी आदेशों का उल्लंघन करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे।
क्या था मामला?
11 अप्रैल 2023 को झारखंड में बीजेपी ने हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ सचिवालय मार्च का आह्वान किया था। पार्टी ने इस मार्च को राज्य सरकार की “विफलताओं” के खिलाफ जनता की आवाज बताया था। प्रशासन ने आंदोलन से पहले ही सचिवालय के पास धारा 144 लागू कर दी थी। इसके बावजूद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी धुर्वा चौक पर इकट्ठा हो गए।
झड़प और बवाल
प्रदर्शन के दौरान पुलिस और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच जमकर झड़प हुई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पानी की बौछार, आंसू गैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया। इस हिंसा में 60 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें पुलिसकर्मी, राजनीतिक कार्यकर्ता और पत्रकार शामिल थे।
एफआईआर में क्या थे आरोप?
प्रदर्शन के बाद धुर्वा थाने में एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के बयान पर एफआईआर दर्ज की गई। इसमें 28 बीजेपी नेताओं पर दंगा भड़काने, सरकारी काम में बाधा डालने और सरकारी आदेशों का उल्लंघन करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे।
हाई कोर्ट का फैसला
झारखंड हाई कोर्ट ने इस एफआईआर को रद्द करते हुए कहा था कि यह मामला बेवजह दर्ज किया गया है। कोर्ट ने इसे राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बताया और कहा कि नेताओं पर लगाए गए आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला
झारखंड सरकार की अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने धारा 144 के दुरुपयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रशासन को आंदोलनकारियों की आवाज को दबाने के बजाय उनके मुद्दों को सुनना चाहिए।
झारखंड बीजेपी की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद झारखंड बीजेपी नेताओं ने राहत की सांस ली। उन्होंने इसे “न्याय की जीत” और “राजनीतिक प्रतिशोध के खिलाफ एक सबक” बताया। बाबूलाल मरांडी ने कहा, “यह फैसला यह साबित करता है कि हम किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे थे।”
झारखंड सरकार की आलोचना
बीजेपी नेताओं ने झारखंड सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह मामला राजनीतिक विद्वेष का नतीजा था। उन्होंने आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन सरकार विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है।
धारा 144 और आंदोलनकारी राजनीति
इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि प्रशासन राजनीतिक आंदोलनों को रोकने के लिए धारा 144 का इस्तेमाल क्यों करता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस प्रवृत्ति पर सवाल उठाए हैं और इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला झारखंड में राजनीतिक आंदोलनों और प्रशासनिक फैसलों पर बड़ा प्रभाव डालेगा। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि राजनीतिक विरोध के नाम पर एफआईआर दर्ज करना आसान नहीं होगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले के बाद झारखंड की राजनीति में क्या बदलाव आते हैं।

