
बांग्लादेश ने भारत से अपनी पूर्व प्रधानमंत्री Sheikh Hasina का प्रत्यर्पण करने की मांग की है। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार ने इस संबंध में भारत को एक पत्र भेजा है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने इस पत्र की पुष्टि की है और बताया कि इस मामले पर फिलहाल नई दिल्ली से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस बीच, भारत में बांग्लादेश के पूर्व राजदूत महेश सचदेव ने बताया कि शेख हसीना प्रत्यर्पण की इस मांग से बचने के लिए क्या कदम उठा सकती हैं।
शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश का प्रत्यर्पण अनुरोध
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश के अंतरिम सरकार द्वारा प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया है। यह मामला तब सामने आया जब शेख हसीना अगस्त 2024 में भारत चली आईं थीं और उनके बांग्लादेश लौटने के बाद उन पर कई आरोप लगाए गए। बांग्लादेश सरकार का कहना है कि शेख हसीना को उनके खिलाफ चल रहे मामलों में न्याय का सामना करना चाहिए। इस संदर्भ में बांग्लादेश सरकार ने भारत से उनके प्रत्यर्पण की मांग की है।

शेख हसीना का प्रत्यर्पण: पूर्व राजदूत महेश सचदेव की राय
महेश सचदेव, जो बांग्लादेश में भारत के पूर्व राजदूत रह चुके हैं, ने इस मामले पर अपनी राय दी है। उन्होंने एक विशेष साक्षात्कार में बताया कि शेख हसीना के पास प्रत्यर्पण से बचने के लिए कुछ कानूनी उपाय हैं। सचदेव ने कहा कि शेख हसीना अदालत का रुख कर सकती हैं और प्रत्यर्पण अनुरोध को चुनौती दे सकती हैं।

सचदेव ने यह भी बताया कि जैसे यूरोपीय देशों ने भारत के प्रत्यर्पण अनुरोधों को अस्वीकार किया था, वैसे ही शेख हसीना भी यह दावा कर सकती हैं कि उन्हें अपनी सरकार पर विश्वास नहीं है और उन्हें बांग्लादेश में प्रताड़ित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत भी राजनीतिक कारणों से शेख हसीना के प्रत्यर्पण को अस्वीकार कर सकता है।
2013 में हस्ताक्षरित प्रत्यर्पण संधि
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसे 2016 में संशोधित किया गया था। यह संधि दोनों देशों के बीच सीमा पार आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए एक रणनीतिक कदम थी। हालांकि, यह संधि केवल आपराधिक मामलों के लिए है और इसमें प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं।
महेश सचदेव ने बताया कि अधिकारी आज सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत को एक नोट भेजा है जिसमें शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की गई है। ऐसे में भारत और बांग्लादेश के अधिकारी इस मुद्दे पर विचार कर रहे हैं और संभावनाओं पर चर्चा कर रहे हैं।
शेख हसीना के प्रत्यर्पण का मामला नया नहीं है
महेश सचदेव ने कहा कि शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग बांग्लादेश की ओर से नया मामला नहीं है। यह मांग समय-समय पर उठाई जाती रही है, खासकर जब से शेख हसीना ने अगस्त में भारत में शरण ली थी। बांग्लादेश सरकार के अनुसार, शेख हसीना पर भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक मामलों में आरोप हैं, जिनका उन्हें बांग्लादेश में मुकदमा चलाकर जवाब देना चाहिए।
शेख हसीना को भारत में शरण मिल सकती है?
महेश सचदेव ने यह भी कहा कि यह कहना मुश्किल है कि शेख हसीना भारत में कितने समय तक रहेंगी, क्योंकि शरण देने के निर्णय राजनीतिक आधार पर लिए जाते हैं और इसके लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं होते। भारत शरणार्थियों को शरण देने के लिए एक राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाता है और यह निर्णय सरकार की नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर निर्भर करता है।
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि का महत्व
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि की बड़ी अहमियत है। यह दोनों देशों के बीच आतंकवाद, सीमा पार अपराधों और अन्य संगठित अपराधों से निपटने के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में काम करती है। इस संधि के तहत, किसी भी व्यक्ति का प्रत्यर्पण तभी किया जा सकता है, जब उसके खिलाफ गंभीर अपराध का आरोप हो और वह अपराध दोनों देशों में समान रूप से अपराध माना जाए।
शेख हसीना की स्थिति और भारत की भूमिका
शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश सरकार के द्वारा उठाए गए आरोपों के बावजूद, भारत को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी होगी। शेख हसीना बांग्लादेश की एक प्रमुख नेता हैं और उनकी स्थिति का राजनीतिक और कूटनीतिक असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ सकता है।
भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह किसी भी मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करे और बांग्लादेश के अनुरोध पर कोई जल्दबाजी न करे। इसके अलावा, भारत को यह भी ध्यान में रखना होगा कि शरण देने का निर्णय राजनीतिक दृष्टिकोण से लिया जाए और यह केवल शेख हसीना की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाए।
संभावित कानूनी और कूटनीतिक उपाय
शेख हसीना के पास कुछ कानूनी और कूटनीतिक उपाय हो सकते हैं जिनसे वह प्रत्यर्पण से बच सकती हैं। सबसे पहले, उन्हें अदालत में इस मामले को चुनौती देने का अधिकार है। इसके अलावा, अगर भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक बातचीत होती है, तो वह दोनों देशों के बीच एक समझौते तक पहुंचने का प्रयास कर सकती हैं।
दूसरी ओर, भारत इस मामले में राजनीतिक दृष्टिकोण से काम कर सकता है। यदि यह मामला दोनों देशों के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, तो भारत इसे हल करने के लिए कूटनीतिक रास्ते तलाश सकता है।
शेख हसीना के प्रत्यर्पण का मामला न केवल कानूनी बल्कि कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। उन्हें प्रत्यर्पण से बचने के लिए कई कानूनी उपाय मिल सकते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से भारत और बांग्लादेश के रिश्तों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक रणनीति पर निर्भर करेगा। शेख हसीना के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय है, और वह इस मामले में अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए सभी उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल कर सकती हैं।

