
Jallianwala Bagh: फ्रांस ने 80 साल बाद स्वीकार किया कि 1944 में थियरोय, सेनेगल में फ्रांसीसी सेना द्वारा पश्चिम अफ्रीकी सैनिकों की हत्या जनसंहार थी। यह घटना उस समय हुई थी जब 1944 के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रांसीसी सेना के लिए लड़ रहे लगभग 400 पश्चिम अफ्रीकी सैनिकों को बेरहमी से मार डाला गया था। इनमें से अधिकांश सैनिक निहत्थे थे। हाल ही में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस घटना को जनसंहार मानते हुए एक पत्र के जरिए सेनेगल सरकार से इस घटना की सच्चाई को स्वीकार करने का आग्रह किया।
इसी बीच, भारत में जलियांवाला बाग की घटना की 100वीं वर्षगांठ पर ब्रिटेन ने केवल खेद व्यक्त किया था, जबकि इसे लेकर किसी आधिकारिक माफी की घोषणा नहीं की गई। जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश जनरल डायर द्वारा निहत्थे भारतीय नागरिकों पर बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलवाकर सैकड़ों लोगों की जान ले ली गई थी।

फ्रांस की स्वीकृति – एक ऐतिहासिक कदम
फ्रांस का यह कदम उस समय आया है जब 1 दिसंबर 2024 को थियरोय नरसंहार की 80वीं बरसी थी। फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने यह पत्र सेनेगल के राष्ट्रपति बासिरू डियोमी फाये को लिखा, जिसमें उन्होंने यह स्वीकार किया कि उस दिन थियरोय गांव में जो सैनिक मारे गए, वे केवल अपनी सही तनख्वाह की मांग कर रहे थे। फ्रांसीसी सरकार ने पहले इस घटना को “बगावत” के रूप में प्रस्तुत किया था, लेकिन अब मैक्रों ने इसे जनसंहार मानते हुए उसे स्वीकार किया है। इस पत्र में मैक्रों ने लिखा है, “फ्रांस को यह स्वीकार करना चाहिए कि यह नरसंहार सैनिकों और शस्त्रधारी सैनिकों के बीच तनख्वाह के मुद्दे पर हुई एक घातक मुठभेड़ के परिणामस्वरूप हुआ।”

सेनेगल के राष्ट्रपति बासिरू डियोमी फाये ने इस पत्र को स्वीकार करते हुए कहा कि यह एक नई शुरुआत है, ताकि थियरोय की इस दर्दनाक घटना की पूरी सच्चाई सामने आ सके। यह कदम फ्रांस और सेनेगल के रिश्तों के लिए एक नया मोड़ साबित हो सकता है, खासकर जब सेनेगल में फ्रांसीसी प्रभाव कम होता जा रहा है।
ब्रिटेन की खेद की राजनीति
अब सवाल उठता है कि ब्रिटेन कब जलियांवाला बाग के लिए आधिकारिक माफी मांगेगा। जलियांवाला बाग की घटना भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। 13 अप्रैल 1919 को, जब पंजाब में जलियांवाला बाग में हजारों भारतीय नागरिक ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे, ब्रिटिश जनरल डायर ने अपनी सेना के साथ वहां पहुंचकर बिना चेतावनी के गोलियां चलवाइं। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे कभी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया।
2019 में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने जलियांवाला बाग नरसंहार पर केवल खेद व्यक्त किया था, लेकिन इसके लिए माफी नहीं मांगी। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की इस खेद की घोषणा को भारतीय समाज ने मिश्रित प्रतिक्रियाओं के साथ लिया था। माफी का मुद्दा आज भी उठता है, और कई भारतीय नेता और इतिहासकार मानते हैं कि यह एक गहरी अन्यायपूर्ण घटना थी, जिसके लिए ब्रिटेन को पूरी तरह से माफी मांगनी चाहिए।
ब्रिटेन का इंकार और भारतीय जनता का गुस्सा
जलियांवाला बाग की घटना ने भारतीयों के दिलों में गहरी चोट पहुंचाई थी, और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ माना जाता है। इस घटना ने न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के गुस्से को बढ़ाया, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गया।
वर्तमान में, कई भारतीय नेता और इतिहासकार ब्रिटेन से अपील कर रहे हैं कि वे इस घटना के लिए आधिकारिक माफी मांगें। हालांकि ब्रिटेन सरकार ने हमेशा इस मामले में अपने कदम पीछे खींचे हैं, और यह मुद्दा आज भी खुले तौर पर लड़ा जा रहा है।
फ्रांस और ब्रिटेन की तुलना
फ्रांस और ब्रिटेन की कार्रवाइयों की तुलना करें तो दोनों देशों की उपनिवेशी नीतियां और उनके द्वारा किए गए अपराध एक जैसे थे। जहां एक ओर फ्रांस ने थियरोय नरसंहार को जनसंहार मानते हुए माफी की प्रक्रिया शुरू की है, वहीं ब्रिटेन आज भी जलियांवाला बाग के लिए माफी मांगने से इंकार कर रहा है। यह अंतर सवाल खड़ा करता है कि ब्रिटेन, जो हमेशा अपने साम्राज्यवादी इतिहास पर गर्व करता है, क्या कभी भारतीय जनता से सच्ची माफी मांगेगा।
क्या भारत को जलियांवाला बाग के लिए ब्रिटेन से माफी की उम्मीद रखनी चाहिए?
जलियांवाला बाग की घटना से जुड़ी पीड़ा और भारतीय समाज की भावनाओं को देखते हुए, यह सवाल पूछा जा सकता है कि क्या भारत को ब्रिटेन से इस घटना के लिए माफी की उम्मीद रखनी चाहिए। भारत ने ब्रिटेन से इस घटना पर माफी की कई बार मांग की है, लेकिन ब्रिटेन ने इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार करते हुए माफी नहीं मांगी। अब भारत के नागरिक, नेता और इतिहासकार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या ब्रिटेन को इस घातक घटना के लिए सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगनी चाहिए।
जब फ्रांस ने 80 साल बाद थियरोय नरसंहार को जनसंहार माना है, तो यह एक सकारात्मक और ऐतिहासिक कदम है। वहीं, जलियांवाला बाग की घटना के लिए ब्रिटेन की माफी की कमी भारतीय जनता के लिए एक निराशाजनक तथ्य है। भारतीय समाज का विश्वास है कि ब्रिटेन को भी इस शर्मनाक घटना के लिए माफी मांगनी चाहिए, ताकि यह घाव, जो भारतीय जनता के दिलों में है, कभी भर सके

