Sharda Sinha: भारत और बिहार के प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात निधन हो गया। छठ गीतों के जरिए अपनी खास पहचान बनाने वाली शारदा सिन्हा ने छठ महापर्व की शुरुआत के साथ ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका निधन हर उस व्यक्ति के लिए दुखद खबर बन गई जिसने उनके गीतों के माध्यम से उनसे प्रेम किया। 72 वर्ष की आयु में शारदा सिन्हा ने दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। इसे संयोग कहें या सौभाग्य, जिस महापर्व छठ के गीतों ने उन्हें लोकसंगीत का बड़ा नाम बनाया, उसी महापर्व के पहले दिन मां की गोद में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। शारदा सिन्हा लंबे समय से बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं। उनके पति की मृत्यु के बाद ही उनकी तबीयत बिगड़ने की खबर सामने आई थी।
अंतिम संस्कार कब और कहां होगा?
शारदा सिन्हा के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार पटना में किया जाएगा। शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर 9:40 बजे इंडिगो फ्लाइट से पटना ले जाया जाएगा। मंगलवार दोपहर 3:30 बजे एम्स से उनके शव को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लाया गया। अभिनेता और सांसद मनोज तिवारी ने बताया कि पटना में उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। बुधवार दोपहर 12 बजे के बाद पटना में शारदा सिन्हा के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, ताकि उनके चाहने वाले अंतिम विदाई दे सकें। 7 नवंबर को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। हजारों फैंस उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचेंगे।
शारदा सिन्हा को पद्म भूषण से नवाजा गया था
गौरतलब है कि शारदा सिन्हा का निधन 72 साल की उम्र में हुआ। उन्होंने अपनी मधुर आवाज से सौ से अधिक भोजपुरी गीतों को जीवंत किया और अपनी खास पहचान बनाई। उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। खासकर छठ पूजा के अवसर पर उनके गीत हर घर में गूंजते हैं और आगे भी इस महापर्व पर उनके गीतों की धुन कानों में गूंजती रहेगी। शारदा सिन्हा का इस दुनिया से जाना हर किसी के लिए एक गहरा दुख है। उनके बेटे ने भी उनके स्वास्थ्य को लेकर एक दिन पहले ही जानकारी दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शारदा के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी।
गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं शारदा सिन्हा
आपको बता दें, शारदा सिन्हा को 25 अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। वे लंबे समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। उनके बेटे अंशुमान ने बताया कि वे 2017 से मल्टीपल मायलोमा (ब्लड कैंसर) से लड़ रही थीं। सिर्फ एक महीने पहले ही, 22 सितंबर को, शारदा सिन्हा के पति बृज किशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हुआ था। पति की मृत्यु के बाद से ही शारदा सिन्हा का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था और अंत में मंगलवार को उन्होंने आखिरी सांस ली।
छठ महापर्व और शारदा सिन्हा का जुड़ाव
शारदा सिन्हा का नाम आते ही छठ पूजा का महापर्व याद आता है। उन्होंने छठ के अनेक गीतों को अपनी सुरीली आवाज से सजीव कर दिया। हर साल छठ के अवसर पर उनके गाए गीत जैसे “कांच ही बांस के बहंगिया” और “पर्व के थाली में लउकाला चनना” देश और विदेशों में बसे भारतीयों के दिलों में बस जाते हैं। ये गीत हर साल इस महापर्व की रौनक बढ़ाते हैं और लोक संस्कृति की गहराई को सामने लाते हैं।
एक महान लोकगायिका का जाना: कला और संस्कृति पर प्रभाव
शारदा सिन्हा का जाना केवल एक महान लोकगायिका का निधन नहीं है बल्कि भारतीय लोक संगीत का एक अमूल्य खजाना भी हमने खो दिया है। उन्होंने न सिर्फ भोजपुरी और मैथिली में बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में भी लोक संगीत को एक अलग पहचान दी। अपने सशक्त और भावुक स्वरों से वे हर दिल में बसीं और आज भी उनके गाए हुए गीत हर किसी को उनके व्यक्तित्व से जोड़ते हैं।
शारदा सिन्हा ने लोकसंगीत को जीवंत बनाए रखा और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाया। उनके गाए गीतों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को इतनी सहजता से प्रस्तुत किया गया कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता था। उनकी गायिकी में ग्रामीण संस्कृति की महक और भारतीय लोक संस्कृति की गहराई झलकती थी।
फैंस और चाहने वालों में शोक की लहर
शारदा सिन्हा के निधन की खबर सुनते ही उनके फैंस और चाहने वालों में गहरा शोक फैल गया। सोशल मीडिया पर उनके चाहने वालों ने उनके गीतों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। फैंस का कहना है कि शारदा सिन्हा का निधन लोक संगीत के एक युग का अंत है। बिहार, यूपी, झारखंड और भारत के कोने-कोने में बसे उनके फैंस उनकी कमी को हमेशा महसूस करेंगे।
शारदा सिन्हा का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा
उनकी गायिकी ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है। छठ महापर्व और उनके गीतों का विशेष स्थान है, जो आज के बाद भी भारतीयों के दिलों में जीवित रहेगा। उनकी मधुर आवाज हमेशा भारतीय लोक संगीत के आकाश में गूंजती रहेगी। शारदा सिन्हा का जाना लोक संगीत के एक अध्याय का अंत है, परंतु उनकी कला और धरोहर हमेशा जीवित रहेगी।