सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उच्च न्यायालयों और स्वयं को चेतावनी दी कि किसी भी मामले में सीबीआई जांच का आदेश अंतिम उपाय होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह केवल तब लिया जाना चाहिए जब अन्य सभी विकल्प समाप्त हो जाएं और मामले की निष्पक्ष जांच पर संदेह हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी विधान परिषद के कर्मचारियों की भर्ती में कथित अनियमितताओं की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश संदेह और अनुमान के आधार पर पारित पाया और उसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने मामला पुनर्विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजा।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी ने कहा कि उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट सामान्य तौर पर सीबीआई जांच का आदेश नहीं दे सकते। यह संवैधानिक शक्ति (अनुच्छेद 32 और 226) असाधारण और सावधानीपूर्वक उपयोग की जानी चाहिए। केवल इसलिए कि किसी पक्ष को राज्य पुलिस पर संदेह है, सीबीआई जांच का आदेश देना उचित नहीं।
कब की जा सकती है सीबीआई जांच
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई कठोर नियम नहीं है कि कब सीबीआई जांच होनी चाहिए। अदालतें केवल ऐसे मामलों में यह कदम उठा सकती हैं जब मामला राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय महत्व का हो। इससे अनावश्यक रूप से केंद्रीय एजेंसी पर बोझ नहीं डाला जाना चाहिए।
अंतिम उपाय की अहमियत
जस्टिस महेश्वरी ने कहा कि सीबीआई जांच केवल अंतिम उपाय के रूप में होनी चाहिए। सभी विकल्पों और साधनों को इस्तेमाल करने के बाद ही इसे आदेशित किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य है कि संसाधनों का दुरुपयोग न हो और न्याय प्रणाली प्रभावी बनी रहे।


