
BRS Protest: भारत राष्ट्र समिति (BRS) के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव (KTR) ने दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों धर्मेन्द्र प्रधान और नितिन गडकरी से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा प्रस्तावित दिशा-निर्देशों पर गंभीर आपत्ति जताई और केंद्रीय सरकार को एक औपचारिक ज्ञापन सौंपा। BRS ने इन बदलावों को राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन और संघीय ढांचे का हनन बताया।
UGC के प्रस्तावित नियमों का विरोध
KTR ने कहा कि केंद्रीय सरकार द्वारा प्रस्तावित नियमों का राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर सीधा हमला है। उन्होंने राज्य सरकारों के अधिकारों में हस्तक्षेप करने के प्रयासों की कड़ी निंदा की और इस योजना का विरोध किया जिसमें उपकुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपालों को देने का प्रस्ताव है। उन्होंने इसे राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप करार दिया और कहा कि इससे राज्य-प्रबंधित विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा। BRS का मानना है कि राज्य सरकारों को अपने विश्वविद्यालयों के प्रशासन पर पूरी तरह से नियंत्रण होना चाहिए, ताकि शिक्षा नीति क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार बनाई जा सके।

भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता पर खतरा
BRS पार्टी ने प्रस्तावित “उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलना” धारा पर भी गंभीर चिंता जताई। KTR ने कहा कि यह प्रावधान एससी, एसटी और बीसी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों को बाईपास करने का एक साधन बन सकता है। इससे नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और सामाजिक न्याय प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रावधान लागू किया जाता है तो वंचित समुदायों के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों में समान अवसरों की संभावना कम हो जाएगी, जो संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण अधिकारों का उल्लंघन होगा।

UGC दिशा-निर्देशों में बदलाव की मांग
KTR ने शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों और कानूनी सलाहकारों से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद केंद्रीय सरकार के सामने अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को उच्च शिक्षा नीति बनाने का अधिकार होना चाहिए और विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी नए UGC नियम को लागू करने से पहले सभी राज्यों से परामर्श लिया जाना चाहिए ताकि संघीय ढांचे की भावना बनी रहे।
BRS ने केंद्रीय सरकार को एक विस्तृत छह पृष्ठों का अपील सौंपा जिसमें UGC से आग्रह किया गया है कि वह नए नियमों को इस प्रकार तैयार करें जिससे राज्य सरकारों की स्वायत्तता बनी रहे। KTR ने कहा कि BRS राज्य के हितों के लिए लड़ाई जारी रखेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षा नीति में कोई असंतुलन न हो। उन्होंने केंद्र से यह भी मांग की कि सभी हितधारकों की राय ली जाए और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए निष्पक्ष तरीके से निर्णय लिया जाए।
राज्य सरकारों की स्वायत्तता की रक्षा का आग्रह
KTR ने इस मुद्दे को लेकर और भी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राज्यों को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे उच्च शिक्षा नीति बनाने और विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक कार्यों पर नियंत्रण रखें। इसके अलावा, उन्होंने यह भी मांग की कि केंद्र सरकार को सभी राज्यों से परामर्श लेने के बाद ही कोई भी नया UGC नियम लागू करना चाहिए, ताकि संघीय ढांचे का उल्लंघन न हो और राज्यों की स्वायत्तता बरकरार रहे।
BRS के कार्यकारी अध्यक्ष ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर इन नए नियमों को लागू किया गया, तो राज्य सरकारों के अधिकारों का उल्लंघन होगा और इससे न केवल राज्य सरकारों का विश्वास कम होगा, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में भी असंतुलन पैदा होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को अपनी विशेष परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर शिक्षा नीति को तैयार करने का अधिकार होना चाहिए।
केंद्र सरकार से निष्पक्ष निर्णय की मांग
KTR ने यह भी स्पष्ट किया कि BRS पार्टी इस मुद्दे पर संघर्ष जारी रखेगी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता की रक्षा के लिए सभी संभव कदम उठाएगी। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि वे सभी हितधारकों से राय लें और निष्पक्ष तरीके से निर्णय लें ताकि विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को बनाए रखा जा सके। BRS का मानना है कि यह कदम न केवल राज्यों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि उच्च शिक्षा प्रणाली को भी मजबूत बनाएगा।
BRS की राजनीति और संघीय ढांचा
BRS ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक राजनीतिक आंदोलन की दिशा में काम करने का निर्णय लिया है। इस आंदोलन के द्वारा पार्टी राज्य सरकारों की स्वायत्तता को बनाए रखने की कोशिश करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि केंद्रीय सरकार के नियम राज्यों की पहचान और संस्कृति के खिलाफ न जाएं।
BRS द्वारा उठाए गए इस मुद्दे ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया कि राज्यों को अपनी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा नीति बनाने का अधिकार होना चाहिए। BRS ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह राज्य सरकारों की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए नए UGC नियमों पर पुनर्विचार करे और सुनिश्चित करे कि इन नियमों का राज्यों के विकास और शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़े।
KTR ने अपनी पार्टी के माध्यम से यह संदेश भी दिया कि BRS हमेशा राज्य सरकारों के अधिकारों की रक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि भारतीय संघीय ढांचे का उल्लंघन न हो।

