
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने केरल के पठानमथिट्टा में आयोजित हिन्दू धर्म सम्मेलन में अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान महत्वपूर्ण बयान दिए। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज को अपनी एकता के जरिये दुनिया का गुरु बनने का अवसर मिलेगा। भागवत ने हिन्दू समाज की एकता को शक्ति का स्रोत बताते हुए यह भी कहा कि कोई और तर्क देने की जरूरत नहीं है। उन्होंने समाज की एकजुटता को ऐतिहासिक और वर्तमान साक्ष्यों से जोड़ते हुए कहा कि एकजुट समाज ही प्रगति करता है, जबकि बिखरा हुआ समाज हमेशा गिरावट की ओर जाता है।
हिन्दू समाज की एकता से मिलेगा शक्ति का संचार
भागवत ने कहा, “हिन्दू समाज को अपनी जीवन पद्धति को चलाने के लिए हिन्दू एकता की जरूरत है, और इसी एकता से शक्ति का जन्म होगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दुनिया में यह एक नियम है कि जो समाज संगठित होता है, वह समृद्ध होता है, जबकि जो बिखरता है, वह विघटन की ओर बढ़ता है। उन्होंने इतिहास और वर्तमान की मिसाल देते हुए कहा कि एकजुट समाज ही अपनी सफलता को सुनिश्चित करता है।

हिन्दू होना एक प्रकृति का नाम
भागवत ने हिन्दू समाज की विशेषता को समझाते हुए कहा कि हिन्दू केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक “प्रकृति” का नाम है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हिन्दू समाज के भीतर विविधता है, जिसमें कई विश्वास, सम्प्रदाय, संप्रदाय, भाषाएं और रीति-रिवाज शामिल हैं, लेकिन इस विविधता के बावजूद, सभी की एक सामान्य प्रकृति है। भागवत के अनुसार, “हिन्दू समाज धर्म की जीवन पद्धति है और इसका उद्देश्य केवल विश्व कल्याण के लिए शक्ति का उपयोग करना है।”

हिन्दू समाज की शक्ति से होगा वैश्विक कल्याण
RSS प्रमुख ने कहा, “हिन्दू समाज में विविधता होने के बावजूद एकात्मता है। यह दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रयोग में लाई जाएगी।” उन्होंने यह भी बताया कि हिन्दू समाज का उद्देश्य केवल अपनी भलाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पूरी दुनिया के कल्याण के लिए कार्य करना है। भागवत ने कहा कि चाहे वह रेगिस्तान में रहने वाले लोग हों या समुद्र के किनारे बसे लोग, सभी का जीवन एक समान है, क्योंकि उनकी प्रकृति एक जैसी है, और यही हिन्दू धर्म का असली स्वरूप है।
विश्व में संघर्षों का कारण: स्वार्थ और भेदभाव
भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि दुनिया में जितने भी संघर्ष हो रहे हैं, उनके पीछे मुख्य कारण स्वार्थ और भेदभाव हैं। उन्होंने कहा, “मनुष्य ने कभी एकजुटता से नहीं देखा, बल्कि हमेशा भेदभाव की दृष्टि से देखा। जब हम दूसरों को अलग नजरिए से देखते हैं, तो हम उन्हें खुद से भिन्न समझने लगते हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये भेदभाव केवल बाहरी रूपों में हैं, जबकि अंदर से हम सभी एक ही धर्म को मानते हैं।
हिन्दू धर्म: एकता और सहानुभूति का प्रतीक
भागवत ने हिन्दू धर्म को “सहानुभूति का दृष्टिकोण” बताया। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म कोई बाहरी विविधता नहीं है, बल्कि इसका असली स्वरूप आंतरिक एकता है। हिन्दू समाज में दिख रही भिन्नताएं केवल बाहरी रूप हैं, जबकि असल में हम सभी एक ही धर्म का पालन करते हैं, जो कि सनातन धर्म है। उनका कहना था कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन की मूलधारा है, जो हमें एक दूसरे के साथ सहानुभूति और समानता से जीने की प्रेरणा देती है।
हिन्दू समाज की एकता से होगा वैश्विक नेतृत्व
भागवत ने हिन्दू एकता को केवल भारतीय समाज की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बताया। उन्होंने कहा, “हिन्दू समाज जब एकजुट होगा, तो यह न केवल भारत को ताकतवर बनाएगा, बल्कि यह दुनिया के लिए भी एक मार्गदर्शक बनेगा।” उनका मानना है कि हिन्दू समाज में निहित शक्ति का इस्तेमाल पूरी दुनिया की भलाई के लिए किया जाएगा, और यह समय की जरूरत है।
मोहन भागवत का यह बयान स्पष्ट रूप से हिन्दू समाज की एकता की अहमियत को रेखांकित करता है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि हिन्दू समाज का उद्देश्य केवल भारत के अंदर सुधार लाना नहीं, बल्कि पूरे विश्व में एक सकारात्मक परिवर्तन लाना है। उनका मानना है कि हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांतों पर चलकर दुनिया के हर कोने में शांति और समृद्धि लाई जा सकती है।
भागवत ने यह भी कहा कि हिन्दू समाज की एकता से न केवल भारत की शक्ति का निर्माण होगा, बल्कि यह एक ऐसा उदाहरण बनेगा, जो पूरी दुनिया में फैलेगा। हिन्दू धर्म की आंतरिक एकता और सहानुभूति का संदेश दुनिया में व्याप्त संघर्षों को समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
अब यह देखना होगा कि हिन्दू समाज के इस एकजुट प्रयास से वैश्विक स्तर पर क्या परिवर्तन आते हैं, लेकिन मोहन भागवत का यह विश्वास है कि हिन्दू समाज की एकता न केवल भारत के लिए, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभकारी साबित होगी।

