
Supreme Court ने शनिवार को एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य जिला न्यायालयों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर चर्चा करना है। इस सम्मेलन में चार तकनीकी सत्र होंगे, जिनमें से पहले सत्र की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना करेंगे। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय के अनुभव और ज्ञान का उपयोग करके न्यायिक सुधारों को लागू किया जाए ताकि मामलों का निपटान समयबद्ध और प्रभावी तरीके से किया जा सके।
कार्य योजना का कार्यान्वयन और विचार-विमर्श
पहला सत्र 2024 के लिए राष्ट्रीय न्यायालय प्रबंधन प्रणाली समिति द्वारा तैयार की गई नीति और कार्य योजना के कार्यान्वयन पर चर्चा करेगा। यह कार्य योजना न्यायालयों में लंबित मामलों की अधिकता को कम करने और उनके शीघ्र निपटान के लिए बाधाओं की पहचान करने पर केंद्रित है। इसके अलावा, इस सत्र में उन रणनीतियों पर भी चर्चा की जाएगी जिनका उद्देश्य लंबित मामलों की संख्या को कम करना है। यह सत्र न्यायिक प्रक्रियाओं की दक्षता को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने की दिशा में अहम होगा।

दूसरे सत्र में न्यायमूर्ति बी.आर. गावई अध्यक्षता करेंगे, जिसमें मामलों के वर्गीकरण और न्याय प्रदान करने में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर चर्चा की जाएगी। इस सत्र में यह निर्णय लिया जाएगा कि किस प्रकार से तकनीकी नवाचारों का उपयोग करके न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक सुलभ और प्रभावी बनाया जा सकता है।

मानव संसाधन और पेशेवर दक्षता पर चर्चा
तीसरे सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति सूर्यकांत करेंगे, जिसमें जिला न्यायपालिका में मानव संसाधन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। इस सत्र का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका में पर्याप्त और योग्य मानव संसाधन मौजूद हों, ताकि मामलों का तेजी से निपटान किया जा सके।
अंतिम सत्र पेशेवर दक्षता में सुधार पर केंद्रित होगा। इसमें न्यायिक अधिकारियों के भविष्य में सुधार के उपायों और उनके प्रदर्शन का निरंतर मूल्यांकन करने पर चर्चा की जाएगी। इस सत्र के माध्यम से यह प्रयास किया जाएगा कि न्यायिक अधिकारियों के कौशल को निरंतर अपडेट किया जाए और उनके प्रदर्शन की नियमित निगरानी की जाए ताकि न्यायपालिका में दक्षता बनी रहे।
वरिष्ठ अधिवक्ता और AOR के नियमों पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन और अधिवक्ता ऑन रिकॉर्ड (AOR) से संबंधित नियमों पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए महत्वपूर्ण होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि एक दो जजों की पीठ 2017 के फैसले से उत्पन्न समस्याओं को नहीं सुलझा सकती, जो वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामकरण की प्रक्रिया से संबंधित थी और जिसे तीन जजों की पीठ ने 12 अक्टूबर 2017 को पारित किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि कोई भी अयोग्य व्यक्ति वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित न हो और जो योग्य हैं, उन्हें इस सम्मान से वंचित न किया जाए। इस संदर्भ में अदालत ने अमिकस क्यूरी (सहायक वकील) एस. मुरलीधर, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के सुझावों को रिकॉर्ड किया और इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्णय लिया।
2017 के फैसले के बाद की स्थिति
2017 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया था, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन की प्रक्रिया को परिभाषित किया गया था। इसके तहत यह तय किया गया था कि केवल योग्य और सक्षम अधिवक्ताओं को ही वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया जाएगा। हालांकि, इसके बाद इस प्रक्रिया में कई समस्याएं उत्पन्न हुईं, जिन पर अब सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है।
न्यायिक सुधार की दिशा में कदम
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए जा रहे ये कदम न्यायपालिका में सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन कदमों से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि न्यायिक प्रणाली और अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और प्रभावी हो। विशेष रूप से, जिला न्यायालयों में सुधारों से न्याय प्राप्ति की प्रक्रिया सरल और शीघ्र होगी, जो आम नागरिकों के लिए फायदेमंद साबित होगी।
सुप्रीम कोर्ट का राष्ट्रीय सम्मेलन और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं AOR के नियमों पर निर्णय निश्चित रूप से न्यायपालिका के सुधार के दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इन सुधारों का उद्देश्य न केवल न्यायिक प्रणाली को दक्ष बनाना है, बल्कि आम नागरिकों को न्याय के प्रति विश्वास भी बढ़ाना है। यदि इन सुधारों को प्रभावी तरीके से लागू किया जाता है, तो यह भारतीय न्यायपालिका को दुनिया के सबसे सशक्त और प्रभावी न्यायिक तंत्रों में से एक बना सकता है।

