
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसद मनेका गांधी की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। मनेका गांधी ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 81 को चुनौती दी थी। इस धारा में चुनाव याचिका दाखिल करने के लिए 45 दिनों की समय सीमा निर्धारित की गई है। इसी समय सीमा के अंदर याचिका दाखिल न करने के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनेका गांधी की चुनाव याचिका को खारिज कर दिया था। इस फैसले के बाद मनेका गांधी ने स्वयं कानून के इस प्रावधान को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कानून बनाना अदालत का काम नहीं
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत का काम कानून बनाना नहीं है। अगर अदालत कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने लगेगी, तो इससे मामलों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो जाएगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मनेका गांधी की उस अपील पर नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।

हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
मनेका गांधी ने अपनी अपील में कहा है कि हाईकोर्ट ने उनकी याचिका में पेश किए गए तथ्यों पर विचार नहीं किया। मनेका गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनाव विजेता के खिलाफ याचिका दायर की थी, लेकिन समय सीमा के अंदर याचिका दाखिल न करने की वजह से इसे खारिज कर दिया गया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनेका गांधी की याचिका क्यों खारिज की?
मनेका गांधी ने सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में हारने के बाद समाजवादी पार्टी के विजयी उम्मीदवार राम भूआल निषाद के चुनाव को चुनौती दी थी। मनेका का आरोप था कि राम भूआल निषाद ने नामांकन के दौरान दाखिल हलफनामे में अपने खिलाफ दर्ज 12 में से 4 आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी।
हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मनेका गांधी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि उन्होंने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में निर्धारित समय सीमा के भीतर अपनी याचिका दाखिल नहीं की। इस समय सीमा के उल्लंघन के कारण हाईकोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
मनेका गांधी का तर्क
मनेका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 81 को चुनौती देते हुए कहा कि इस प्रावधान में निर्धारित समय सीमा उचित नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि समय सीमा के आधार पर उनकी याचिका को खारिज करना सही नहीं है। उनका कहना है कि समय सीमा के कारण चुनाव में अनियमितताओं की जांच नहीं हो पाती, जिससे लोकतंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
Supreme Court का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने मनेका गांधी की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि कानून बनाना और बदलना संसद का काम है, न कि अदालत का। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अदालतें यदि ऐसे मामलों की सुनवाई करने लगेंगी, तो इससे न्याय प्रणाली पर भारी दबाव पड़ेगा और मामलों का बोझ बढ़ेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मनेका गांधी की अपील पर नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। अब इस अपील पर सुनवाई की जाएगी।
चुनाव प्रक्रिया और कानूनी चुनौतियां
यह मामला चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के महत्व को उजागर करता है। चुनाव याचिका दाखिल करने की समय सीमा का पालन करना कानूनी रूप से आवश्यक है। यह प्रावधान चुनाव प्रक्रिया को सुचारू और समयबद्ध बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
मनेका गांधी का यह मामला बताता है कि चुनाव से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं में समय सीमा का कितना महत्व है। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि कानून में बदलाव करना अदालत का काम नहीं है। यह जिम्मेदारी संसद की है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव न केवल मनेका गांधी पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य में चुनावी मामलों को चुनौती देने वाले अन्य लोगों के लिए भी एक उदाहरण बनेगा।

