
Supreme Court ने शुक्रवार को दिल्ली के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (ADJ) सोनू अग्रिहोत्री के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट की नकारात्मक टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटा दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालयों को न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण पर टिप्पणी करते समय संयम बरतना चाहिए। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि न्यायपालिका के सदस्य भी इंसान होते हैं और उनसे गलतियाँ हो सकती हैं, लेकिन ऐसी गलतियों को व्यक्तिगत आलोचना किए बिना सही किया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट की टिप्पणी और ADJ की चुनौती
इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को एक आदेश में ADJ सोनू अग्रिहोत्री के आचरण को “न्यायिक साहसिकता” (judicial misadventure) के रूप में वर्णित किया था। हाई कोर्ट ने उन्हें और अधिक सतर्क रहने की सलाह दी थी। यह टिप्पणी एक चोरी के मामले में अग्रिहोत्री द्वारा जारी anticipatory bail (अग्रिम जमानत) आदेश के संदर्भ में की गई थी।

ADJ ने इस नकारात्मक टिप्पणी को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उनका तर्क था कि ऐसी टिप्पणियाँ उनके पेशेवर आचरण और करियर को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: न्यायिक अधिकारियों के प्रति संयम बरतने की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि न्यायधीश भी इंसान होते हैं और उनसे भी गलतियाँ हो सकती हैं। हालांकि, न्यायिक गलतियों को सुधारते समय व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि अपीलीय न्यायालयों और पुनरीक्षण अदालतों को अपने फैसलों में न्यायिक आदेशों की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और व्यक्तिगत आलोचना से बचना चाहिए।
न्यायिक आदेशों में सुधार का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों के पास यह अधिकार है कि वे न्यायिक आदेशों में हुई गलतियों को सुधार सकें, लेकिन यह सुधार व्यक्तिगत आलोचना पर आधारित नहीं होना चाहिए। न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ की गई नकारात्मक टिप्पणियाँ न्यायिक आदेशों की वैधता पर प्रश्न उठा सकती हैं, लेकिन इन टिप्पणियों का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों की कार्यक्षमता पर हमला करना नहीं होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया कि यदि किसी न्यायिक अधिकारी के आचरण पर संदेह है, तो वह मुद्दा मुख्य न्यायाधीश के पास प्रशासनिक स्तर पर लाना चाहिए, ताकि अधिकारी के करियर को सुरक्षित रखा जा सके और उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
न्यायिक अधिकारियों के करियर की सुरक्षा और व्यक्तिगत आलोचना
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक अधिकारियों के व्यक्तिगत आचरण और उनके पेशेवर निर्णयों पर नकारात्मक टिप्पणियाँ उनके करियर को नुकसान पहुँचा सकती हैं। इससे न केवल न्यायिक अधिकारियों को अपमानित किया जाता है, बल्कि इसका असर पूरे न्यायपालिका पर भी पड़ सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि जब न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कोई आलोचना की जाए, तो वह केवल न्यायिक आदेशों में हुई गलतियों पर आधारित होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत आधार पर।
न्यायपालिका में संरचनात्मक समस्याएँ और सुधार की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के बीच अनुपात की समस्या बनी हुई है, हालांकि इस पर सुधार करने के प्रयास किए जा रहे हैं। न्यायालय ने यह संकेत दिया कि न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है ताकि न्यायिक अधिकारियों पर बिना किसी दबाव के काम किया जा सके और उन्हें व्यक्तिगत आक्षेपों से बचाया जा सके। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका के कर्मचारियों और अधिकारियों की सुरक्षा के लिए और अधिक संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता जताई।
मूल मुद्दा: न्यायिक आदेशों की गुणवत्ता और व्यक्तिगत आलोचना से बचाव
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण बिंदु उठाया कि उच्च न्यायालयों और अन्य अपीलीय न्यायालयों को न्यायिक आदेशों में सुधार करने का अधिकार है, लेकिन इस सुधार को व्यक्तिगत आलोचना से मुक्त रखा जाना चाहिए। न्यायिक अधिकारियों के कामकाजी आचरण पर किसी भी तरह की व्यक्तिगत आलोचना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसके प्रभाव को कम कर सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी केवल तब की जानी चाहिए जब उनकी कार्यक्षमता में गंभीर चूक हो और वह भी केवल न्यायिक आदेशों पर आधारित हो, न कि किसी अन्य आधार पर।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश: न्यायपालिका को सुरक्षित रखना
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ की गई नकारात्मक टिप्पणियाँ केवल उनके पेशेवर जीवन को प्रभावित नहीं करतीं, बल्कि यह न्यायपालिका के कार्यों और निर्णयों की वैधता पर भी सवाल उठा सकती हैं। इस प्रकार के निर्णय से यह संदेश जाता है कि न्यायालयों को न्यायिक आदेशों की समीक्षा करते समय संयम और विवेक का पालन करना चाहिए, ताकि किसी भी न्यायिक अधिकारी की प्रतिष्ठा को अनावश्यक नुकसान न पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक अधिकारियों के करियर की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ व्यक्तिगत आलोचना से बचना चाहिए और केवल न्यायिक आदेशों में सुधार की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह निर्णय न्यायपालिका में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों को एक मजबूत संदेश देता है कि उनकी प्रतिष्ठा और कार्यक्षमता की रक्षा की जाएगी और उन्हें बिना किसी व्यक्तिगत आलोचना के अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने की स्वतंत्रता मिलेगी।

