
उत्तर प्रदेश का हरदोई जिला Holi के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसे भक्त प्रह्लाद की नगरी कहा जाता है, जहां से Holi उत्सव की शुरुआत हुई मानी जाती है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर राक्षस राज हिरण्यकश्यप का वध किया था। आइए जानते हैं Holi और हरदोई का यह ऐतिहासिक संबंध।
Holi की शुरुआत: भक्त प्रह्लाद की कथा हरदोई का पुराना नाम ‘हरि द्रोही’ था, क्योंकि यह राक्षस राज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। हिरण्यकश्यप ने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था और उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन उसके पुत्र प्रह्लाद ने श्री हरि की भक्ति नहीं छोड़ी, जिससे नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने की कई योजनाएं बनाई।

Holika Dahan: भक्त प्रह्लाद की अग्नि परीक्षा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन Holika को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठे। Holika को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, लेकिन हरि कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और Holika जलकर राख हो गई। तभी से Holika Dahan की परंपरा शुरू हुई, जिसे Holi के एक दिन पहले मनाया जाता है।

हरदोई और नरसिंह अवतार हरदोई के पंडितों के अनुसार, हिरण्यकश्यप ने जब प्रह्लाद को मारने की अंतिम कोशिश की, तो भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर खंभे से प्रकट होकर संध्या समय, देहरी पर, अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध किया। यह स्थान आज भी हरदोई में नरसिंह मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।
Holi की परंपरा और भक्त प्रह्लाद कुंड Holika Dahan के बाद भक्त प्रह्लाद की रक्षा को लेकर लोगों ने राख और गुलाल से खेलना शुरू किया। यही परंपरा कालांतर में Holi के रंगों में बदल गई। हरदोई में स्थित भक्त प्रह्लाद कुंड और ऊंचा थोक नामक स्थल आज भी इस इतिहास के गवाह हैं।
Conclusion Holi का यह पौराणिक इतिहास हरदोई को एक विशेष पहचान देता है। भक्त प्रह्लाद की भक्ति और भगवान नरसिंह के अवतार की यह कहानी Holi के महत्व को और भी खास बना देती है। यही कारण है कि Holi सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का प्रतीक भी है।

