
Israel: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की महत्वाकांक्षी योजना, जिसके तहत इजरायल के माध्यम से भारत, यूरोप और अमेरिका को जोड़ा जाना है, इस पर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और इजरायल के विदेश मंत्री गिदोन सार के बीच म्यूनिख शिखर सम्मेलन के दौरान महत्वपूर्ण बातचीत हुई। यह बैठक जर्मनी के म्यूनिख में हुई, जहां दोनों नेताओं ने पश्चिम एशिया की स्थिति सहित कई अहम मुद्दों पर चर्चा की।
क्या है ट्रंप की योजना?
ट्रंप की यह योजना भारत, यूरोप और अमेरिका को इजरायल के जरिए जोड़ने के लिए बनाई गई है। यह परियोजना पहली बार 2023 में नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान घोषित की गई थी। उस समय इसे “इतिहास की सबसे बड़ी सहयोग परियोजना” करार दिया गया था। इस योजना के तहत भारत से इजरायल, इटली होते हुए अमेरिका तक एक व्यापार मार्ग तैयार किया जाएगा, जिसमें बंदरगाह, रेलवे और समुद्र के नीचे केबल बिछाने की योजना शामिल है।

म्यूनिख सम्मेलन में क्या हुआ?
शनिवार को म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (MSC 2025) के दौरान जयशंकर और सार की मुलाकात हुई। इस दौरान जयशंकर ने ‘X’ (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन 2025 के अवसर पर इजरायली विदेश मंत्री गिदोन सार से मिलकर खुशी हुई। पश्चिम एशिया की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की और हमारी द्विपक्षीय साझेदारी की मजबूती और महत्व को रेखांकित किया।”

इजरायली विदेश मंत्री के कार्यालय से जारी बयान के अनुसार, गिदोन सार ने इस बैठक में कहा कि इजरायल भारत के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानता है। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप की इस बड़ी योजना पर चर्चा के लिए भारत और इजरायल के बीच समन्वय जरूरी है।
भारत के लिए क्यों अहम है यह योजना?
यह व्यापार मार्ग भारत के लिए बेहद अहम हो सकता है, क्योंकि यह पश्चिम एशिया के रास्ते यूरोप और अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने में मदद करेगा। इस मार्ग के बनने से भारत के उत्पाद तेजी से यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों तक पहुंच सकेंगे।
इस योजना का फायदा यह होगा कि भारत को व्यापार के लिए परंपरागत मार्गों जैसे स्वेज नहर पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इससे माल ढुलाई की लागत कम होगी और व्यापार की गति तेज होगी।
इजरायल को क्या मिलेगा फायदा?
इजरायल इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा क्योंकि यह मध्य पूर्व और यूरोप के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क बिंदु होगा। इससे इजरायल की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी और उसे एक रणनीतिक व्यापार केंद्र के रूप में स्थापित होने का अवसर मिलेगा।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 2023 में G20 सम्मेलन के दौरान इस परियोजना की प्रशंसा करते हुए कहा था कि यह “पश्चिम एशिया और पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी परियोजना होगी।”
क्या होंगे इस योजना के प्रमुख लाभ?
- व्यापार को गति मिलेगी – भारत से यूरोप और अमेरिका तक सामान भेजना आसान और सस्ता होगा।
- रणनीतिक साझेदारी मजबूत होगी – भारत, इजरायल, यूरोप और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंध और गहरे होंगे।
- नौकरी के अवसर बढ़ेंगे – इस परियोजना के कारण संबंधित देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट सेक्टर में नौकरियों के नए अवसर पैदा होंगे।
- मध्य पूर्व में शांति प्रयासों को बल मिलेगा – इस परियोजना के तहत जिन देशों को जोड़ा जाएगा, उनके बीच व्यापारिक सहयोग बढ़ेगा, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।
भारत-अमेरिका-इजरायल की बढ़ती साझेदारी
भारत और अमेरिका के बीच पहले से ही मजबूत व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्ते हैं। वहीं, इजरायल के साथ भी भारत के रक्षा और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग काफी मजबूत हुआ है। अब जब यह तीनों देश इस नए व्यापार मार्ग पर काम करेंगे, तो यह सहयोग और भी गहरा होगा।
डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी पहले भी कई बड़े व्यापारिक समझौतों पर सहमति जता चुकी है। अब यदि ट्रंप 2025 में दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं, तो इस योजना को और मजबूती मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
चुनौतियां क्या होंगी?
हालांकि, इस योजना के सामने कई चुनौतियां भी हैं।
- राजनीतिक अस्थिरता – पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता इस योजना को प्रभावित कर सकते हैं।
- वित्तीय लागत – यह परियोजना बेहद महंगी होगी और इसमें कई देशों की वित्तीय भागीदारी की जरूरत होगी।
- भौगोलिक और तकनीकी बाधाएं – समुद्र के नीचे केबल बिछाने और रेलवे लाइन बनाने में तकनीकी चुनौतियां आ सकती हैं।
ट्रंप की इस महत्वाकांक्षी योजना से भारत, इजरायल, यूरोप और अमेरिका के बीच व्यापार को नई दिशा मिल सकती है। भारत के लिए यह परियोजना बेहद लाभकारी साबित हो सकती है क्योंकि इससे उसकी वैश्विक बाजारों तक पहुंच आसान होगी। हालांकि, राजनीतिक और वित्तीय चुनौतियां इस परियोजना के लिए बड़ी बाधा बन सकती हैं।
म्यूनिख सम्मेलन में एस. जयशंकर और गिदोन सार की चर्चा यह संकेत देती है कि भारत और इजरायल इस परियोजना को लेकर गंभीर हैं और आने वाले समय में इस पर और अधिक काम हो सकता है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह दुनिया के व्यापारिक नक्शे को पूरी तरह बदल सकती है।

