
Atul Subhash के मामले में ग़ैर लाभकारी संगठन मानवाधिकार एक्शन फोरम के द्वारा राज्य मानवाधिकार आयोग,उत्तर प्रदेश में मुकदमा पंजीकृत किया गया है यह पत्र संगठन के एडवोकेट शुभम द्विवेदी,एडवोकेट निहाल अवस्थी, अरुण कुमार राय एवं एडवोकेट सौरभ कुमार मिश्रा के संयुक्त हस्ताक्षर के द्वारा प्रेषित किया गया है।जिसमें प्रमुखता से न्यायाधीश रीता कौशिक के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करने के लिए अपील की गई है।


अतुल सुभाष के मामले को न तो अपवाद माना जा सकता और न ही इसे स्त्रियों के प्रति पुरुषों की चिर घृणा को निकालने का अवसर बनने दे सकते। स्त्री-पुरुष प्रश्न पर पूरे समाज और न्यायालयों को नए सिरे से सोचना होगा , विवाह के बाद अक्सर पति-पत्नी का रिश्ता नहीं चल पाता है ऐसे में जो महिलायें है वो दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा एवम् गुजारा भत्ता का मुक़दमा दायर कर देती है, आज मृतक अतुल सुभाष जैसे लोग गली-गली में हैं, कुछ लोग पुलिस और कोर्ट की इस प्रक्रिया से बचने के लिए तमाम उत्पीड़न झेल रहे हैं और शारीरिक-मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं, इन्हीं में से एक अतुल सुभाष ने कानूनी व्यवस्था से प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर ली। आज ये कहना ग़लत नहीं होगा कि केवल महिलाओं की बात सुनी जाती है बल्कि पुरुषों की आवाज दब जाती है।वर्तमान में जानबूझकर पुरुषों के खिलाफ केस दर्ज किए जाते हैं और अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि महिलाओं द्वारा उत्पीड़न ,दहेज प्रथा जैसे जो मुक़दमा दर्ज कराये जाते है वो फर्जी होते है जिनका उद्देश्य मात्र मानसिक प्रताड़ना एवं धन उगाही है ।संगठन यह नहीं कहता कि महिलाओं के हक़ के कानून वापस लो बल्कि अब पुरुषों के हक़ में भी बराबरी के कानून व्यवस्था की जरूरत है ,अतुल सुभाष की मौत इस सिस्टम के लिए एक संदेश है कि महिलाओं के हक में इतना मत खड़े हो जाइए कि कोई व्यक्ति बूढ़े मां-बाप को छोड़कर मौत को ही गले लगाने को मजबूर हो जाए।

