UP News: पूर्वी उत्तर प्रदेश में नशीली दवाओं का अवैध कारोबार तेजी से फैल रहा है। युवाओं को नशे के जाल में फंसाकर मोटा मुनाफा कमाने वाले थोक व्यापारी अब दवाओं के नाम बदलकर उन्हें बेचने लगे हैं। हाल ही में ड्रग विभाग की छापेमारी में यह खुलासा हुआ कि नशीली दवा ट्रामाडोल को ‘कोड वर्ड’ के नाम से बेचा जा रहा था ताकि विभाग की नजरों से बचा जा सके। विक्रय पर्चों पर भी दवा का असली नाम नहीं लिखा जाता बल्कि कोड वर्ड का इस्तेमाल किया जाता है।
बायोहब लाइफ साइंसेज से मां वैष्णो फार्मा तक नशे की खेप
ड्रग विभाग को सूचना मिली कि लखनऊ की कंपनी बायोहब लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड से गोरखपुर के पीपीगंज में स्थित मां वैष्णो फार्मा पर बड़ी मात्रा में ट्रामाडोल की दवा भेजी गई है। प्रारंभिक जांच में पता चला कि ‘प्राक्सीवान स्पास’ नामक एक लाख से अधिक गोलियां भेजी गई थीं। जांच के दौरान 240 बाक्स भी बरामद हुए। ट्रामाडोल नशीली दवाओं की नार्कोटिक्स सूची में शामिल है, जो इसका अवैध और खतरनाक उपयोग बताता है।
कंप्यूटर में दवा के नामों का रहस्य और ‘स्पोक-जी’ कोड
जांच के दौरान जब विभाग की टीम ने थोक व्यापारी के कंप्यूटर में आपूर्तिकर्ता की एंट्री चेक की तो हैरानी हुई कि लखनऊ से भेजी गई दवाओं के नाम कंप्यूटर में दर्ज ही नहीं थे। इसके बाद अधिकारियों ने मिलते-जुलते नामों की खोज शुरू की। इसी दौरान ‘स्पोक-जी’ नामक एक कैप्सूल की एंट्री मिली, जिसकी बिक्री सबसे ज्यादा थी, लेकिन उसकी खरीद का कोई रिकार्ड नहीं था। बाद में पता चला कि ‘स्पोक-जी’ एक कोड वर्ड है जिसका असली मतलब ट्रामाडोल था। मां वैष्णो फार्मा का लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया है और दवा की खरीद-बिक्री तुरंत रोक दी गई है।
सख्त कार्रवाई और नोटिस जारी
ड्रग इंस्पेक्टर और सहायक आयुक्त औषधि ने संबंधित कंपनियों और थोक व्यापारी को नोटिस जारी कर तीन दिन में जवाब मांगा है। यदि संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो मुकदमा दर्ज किया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि नशीली दवाओं के अवैध कारोबार के खिलाफ सरकार पूरी तरह सख्त है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जांच में अन्य नशीली दवाओं के भी सबूत मिले हैं, जिनकी जानकारी संबंधित कंपनियों को भेजी जा रही है।
नशीली दवाओं से युवाओं को बचाना आवश्यक
पूर्वी यूपी में नशीली दवाओं का बढ़ता काला कारोबार चिंता का विषय है। युवा पीढ़ी नशे के कारण अपने भविष्य को बर्बाद कर रही है। ऐसे में प्रशासन की सतर्कता और कड़ी कार्रवाई जरूरी है। साथ ही समाज में जागरूकता बढ़ाकर युवाओं को नशे के दुष्प्रभावों से बचाना होगा। केवल कानून नहीं बल्कि शिक्षा और परिवार का सहयोग भी इस समस्या के समाधान में अहम भूमिका निभाएगा।



