UP News: उत्तर प्रदेश में अब स्कूलों के शिक्षकों के लिए देर से पहुंचने की आदत नहीं चलेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सरकारी और निजी दोनों स्कूलों में शिक्षकों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। कोर्ट ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए यह जरूरी कदम है। यह फैसला जस्टिस पी.के. गिरी की पीठ ने शिक्षिकाओं इंद्रा देवी और लीना सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
समयपालन पर तकनीक का सहारा
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि इस विषय पर मुख्य सचिव स्तर पर बैठकें चल रही हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि आजादी के बाद से शिक्षकों की समय पर उपस्थिति के लिए कोई प्रभावी सिस्टम लागू नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि अब तकनीक के इस युग में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अटेंडेंस दर्ज कराना सबसे कारगर उपाय हो सकता है। यानी अब मोबाइल ऐप या पोर्टल के जरिए हर शिक्षक की उपस्थिति दर्ज होगी जिससे देरी तुरंत पकड़ी जा सकेगी।
देर से आने पर मिलेगी सीमित छूट
कोर्ट ने साफ किया कि शिक्षकों को सिर्फ 10 मिनट की देरी की छूट दी जा सकती है। उससे अधिक देरी को लापरवाही माना जाएगा। यह छूट सिर्फ आपात स्थिति में ही स्वीकार होगी। लगातार देर से आने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता शिक्षिकाओं को राहत दी क्योंकि यह उनकी पहली गलती थी और उन्होंने भविष्य में समय पर आने का वादा किया।
अन्य राज्यों से सीख
उत्तर प्रदेश से पहले कई राज्यों ने डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम लागू कर दिया है। मध्य प्रदेश में 1 जुलाई 2025 से ‘Humare Shikshak’ ऐप के जरिए शिक्षकों की ई-अटेंडेंस शुरू की जा चुकी है। बिहार में ‘e-Shikshakosh’ ऐप से उपस्थिति फोटो और लोकेशन सहित दर्ज करनी होती है। वहीं ओडिशा सरकार ने ‘e-Upasthan’ ऐप से छात्रों और शिक्षकों दोनों की हाजिरी ट्रैक करने की व्यवस्था की है।
शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन की दिशा में बड़ा कदम
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन और जवाबदेही लाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। इससे न सिर्फ शिक्षकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित होगी बल्कि छात्रों की पढ़ाई की गुणवत्ता भी बेहतर होगी। आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम लागू होते ही स्कूलों में समयपालन की नई संस्कृति शुरू हो सकती है।



