
Uttarakhand के चमोली जिले के माणा गांव में 55 मजदूरों का एक दल बर्फीली आपदा का शिकार हो गया, जब एक भयंकर हिमस्खलन (एवलांच) उनके कैंप को बुरी तरह से तबाह कर दिया। यह घटना उस समय घटी जब ये मजदूर सीमा सड़क संगठन (BRO) के तहत विजय इंफ्रास्ट्रक्चर कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहे थे। इन श्रमिकों के लिए, 10 फरवरी की सुबह एक सामान्य दिन जैसा प्रतीत हो रहा था, लेकिन अचानक आई बर्फीली आपदा ने उनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। इस आपदा में कई श्रमिकों ने अपने जीवन को बचाने के लिए कठिन संघर्ष किया और अंततः 50 मजदूरों को सुरक्षित बचा लिया गया, लेकिन इस दुर्घटना में चार श्रमिकों की जान भी चली गई।
साक्षी गवाही: एक दिन में सब कुछ बदल गया
गोपल जोशी, जो इस हादसे में फंसे हुए श्रमिकों में से एक थे, ने इस आपदा का अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि शुक्रवार की सुबह वे सामान्य दिन की तरह काम करने के लिए निकले थे। जोशी ने कहा, “मैंने सोचा था कि यह एक शांत सुबह होगी, लेकिन अचानक एक बर्फीला तूफान मेरी ओर बढ़ता हुआ दिखा। मुझे कुछ समझने का मौका भी नहीं मिला, और एवलांच की बर्फ़ ने हमें पूरी तरह से घेर लिया।”

जोशी और उनके साथियों को इस दुर्घटना में बर्फ के भारी ढेर के नीचे दबने से बचने के लिए दौड़ने का मौका नहीं मिला, क्योंकि पहले से ही वहां काफी बर्फ जमा थी। जोशी ने बताया कि इस घटना के दौरान उन्होंने एक तेज आवाज सुनी, जो संभवतः हिमस्खलन की गड़गड़ाहट थी। उन्होंने तुरंत अपनी टीम के साथियों को चेतावनी दी और भागने की कोशिश की, लेकिन बर्फ के भारी ढेर ने उनकी गति को धीमा कर दिया।

An avalanche struck a GREF Camp near Mana village in Garhwal Sector. A number of labourers are feared to be trapped. Indian Army’s IBEX BRIGADE swiftly launched rescue operations inspite of continuing heavy snowfall and minor avalanches. So far 10… pic.twitter.com/adVcAu9g4g
— SuryaCommand_IA (@suryacommand) February 28, 2025
लापता श्रमिकों के परिवारों की चिंता
जब जोशी और उनके साथी बर्फ में दब गए थे, तो उनके परिवारों की चिंता बढ़ गई थी। यह जानकारी आते ही सेना और स्थानीय प्रशासन ने राहत कार्य शुरू कर दिया। इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवान दो घंटे बाद उन्हें बचाने पहुंचे और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। शनिवार को, जोशी और उनके 22 साथियों को सेना के हेलीकॉप्टर द्वारा माणा से ज्योतिरमठ ले जाया गया, जहां उन्हें सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया।
बचाव कार्य और श्रमिकों की हालत
राहत और बचाव कार्य के दौरान, कुछ श्रमिकों को गंभीर चोटें आईं। हिमाचल प्रदेश के विपिन कुमार ने बताया कि वे लगभग 15 मिनट तक बर्फ के नीचे दबे रहे। विपिन ने कहा, “यह मेरा दूसरा जन्म है, क्योंकि मैंने बर्फ के नीचे दबने के बाद, इस कठिन परिस्थिति से बाहर निकलने का केवल एक ही तरीका पाया। जब हिमस्खलन थमा, तब मुझे बाहर निकलने का मौका मिला।” विपिन के शरीर के पिछले हिस्से में चोटें आई हैं।
मनोज भंडारी, एक और श्रमिक ने बताया कि जब वे बर्फ के तूफान से जागे, तो उन्होंने तुरंत अपने साथियों को चेतावनी दी और एक लोडर मशीन के पीछे भाग कर अपनी जान बचाई।
मजदूरों के संघर्ष की कहानियां
मथुरा के तीन श्रमिकों ने बताया कि बर्फ की ढेरों से भागने की कोशिश करते समय वे घायल हो गए थे। अमृतसर के जगबीर सिंह और उनके साथी बर्फ के ढेर से निकलने के बाद, उन्होंने बड़ीनाथ की दिशा में दौड़ने का प्रयास किया। उनमें से अधिकांश श्रमिकों को बर्फ के भारी ढेर के नीचे दबने से चोटें आईं। 19 बचाए गए श्रमिकों को सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज जारी है। इन श्रमिकों में से दो की हालत गंभीर थी और उन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए ऋषिकेश स्थित एम्स भेजा गया।
कैंप में स्थितियाँ और जानकारियाँ
इन श्रमिकों का कैंप पांच कंटेनरों में स्थित था जो सड़क किनारे स्थापित किए गए थे। इन कंटेनरों में उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के श्रमिकों की टीम काम कर रही थी। इन श्रमिकों को सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा काम पर रखा गया था। काम करने का वातावरण और स्थल बर्फ से ढका हुआ था, और इसलिए यदि कोई आपदा होती तो यह सभी के लिए घातक साबित हो सकती थी।
मूल कारण और भविष्य के लिए सलाह
इस हिमस्खलन के कारणों का वैज्ञानिक विश्लेषण करना अभी बाकी है, लेकिन उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी और हिमस्खलन की घटनाएं सामान्य हैं। ये घटनाएं आमतौर पर खराब मौसम, ऊंचाई और अत्यधिक बर्फबारी के कारण होती हैं। ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सुरक्षा उपायों को पहले से सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
सभी कामकाजी क्षेत्रों में खासतौर पर पर्वतीय इलाकों में, जहां हिमस्खलन की संभावना अधिक होती है, वहां पर बर्फीली आपदाओं से बचाव के उपायों की योजना बनानी चाहिए। साथ ही, श्रमिकों को सुरक्षित जगहों पर आश्रय देने के लिए उपयुक्त इंतजाम किए जाने चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसों से बचा जा सके।
चमोली जिले के माणा गांव में हुए हिमस्खलन ने यह सिद्ध कर दिया कि पहाड़ी इलाकों में कार्यरत श्रमिकों के लिए कामकाजी सुरक्षा और आपातकालीन बचाव प्रणाली की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण है। इन श्रमिकों के साहस और संघर्ष को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने जान की जोखिम में डालकर एक दूसरे की मदद की। अब जरूरी है कि राज्य सरकार और संबंधित संगठन ऐसे हादसों के मद्देनजर कदम उठाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं घटित न हों और श्रमिकों का जीवन सुरक्षित रहे।

