
Maha Kumbh 2025: महाकुंभ मेला भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 वर्षों में चार प्रमुख शहरों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवित प्रतीक भी है। इस महाकुंभ मेला में विशेष स्थान अखाड़ों का है, जो सनातन धर्म की प्राचीन परंपराओं और विश्वासों के रक्षक के रूप में कार्य करते हैं।
अखाड़ों का इतिहास और उनका योगदान महाकुंभ में अनमोल है, क्योंकि ये धार्मिक संस्थाएं न केवल साधुओं की आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा हैं, बल्कि भारतीय समाज की धार्मिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं। आइए, इस रिपोर्ट में समझते हैं कि महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका क्या है, इनका इतिहास क्या है और समय के साथ इनमें क्या बदलाव आए हैं।

अखाड़ा क्या है
अखाड़े वे मठ होते हैं जो साधुओं (तपस्वियों) को विशेष आध्यात्मिक परंपराओं और क्रियाओं के तहत एकत्रित करते हैं। ये अपने सदस्यों के लिए अध्ययन, आध्यात्मिकता और शासन के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। इस परंपरा की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। इन्होंने ही संतों और साधुओं के संगठनों को ‘अखाड़ा’ नाम दिया था।

भारत में कुल 13 प्रमुख अखाड़ों को मान्यता प्राप्त है, जो शैव, वैष्णव और उदासी संप्रदायों से जुड़े हैं। इन अखाड़ों में शैव संप्रदाय के सात अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन और उदासी संप्रदाय के तीन अखाड़े शामिल हैं।
इन अखाड़ों के नाम हैं – श्री पंचदशनाम जुना (भैरव) अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवहन अखाड़ा, श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़ा, श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी, श्री पंच निरमोही अनी अखाड़ा, श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा, श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़ा, तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल, श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन। इन अखाड़ों का इतिहास बहुत पुराना है और इनकी मौजूदगी सदियों से बनी हुई है।
अखाड़ों का उद्देश्य
प्राचीन काल में आदि शंकराचार्य ने साधुओं की ऐसी संस्थाओं की स्थापना की थी जो शस्त्रों और शास्त्रों दोनों में निपुण हों, ताकि हिन्दू धर्म की रक्षा की जा सके। इन अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक परंपराओं को बनाए रखना था, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर धर्म और पवित्र स्थलों की रक्षा करना था। नागा साधु जैसे अखाड़े इस परंपरा के उदाहरण हैं, जो आज भी युद्ध और अस्तबल की परंपराओं को जीवित रखते हैं।
नागा साधुओं को शस्त्रों और शास्त्रों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
वरिष्ठ पत्रकार भव्य श्रीवास्तव के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने दशामी परंपरा की स्थापना की थी, जिसके तहत उन्होंने संन्यासियों की दस श्रेणियां बनाई थीं। इसके बाद, इन श्रेणियों के तहत मठों का निर्माण हुआ था, जिनकी कुल संख्या 52 थी, और ये 52 प्रमुख गुरुओं के नाम पर आधारित थे। 14वीं सदी में जब आक्रमणकारियों का प्रभाव बढ़ा और दिल्ली सल्तनत के आक्रमणकारी जैसे खिलजी और तुगलक ने भारत पर आक्रमण किया, तब इस समय नागा साधुओं को शस्त्र प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस हुई, क्योंकि इससे पहले वे शस्त्रों का उपयोग नहीं करते थे। उस समय एक कुंभ में यह निर्णय लिया गया कि नागाओं को शस्त्र प्रशिक्षण दिया जाए, और तभी से नागाओं का सैन्य प्रशिक्षण शुरू हुआ।
पहला अखाड़ा कौन सा था?
पत्रकार भव्य श्रीवास्तव ने एबीपी को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि ‘आवहन अखाड़ा’ पहले स्थापित हुआ था। इसे इसीलिए बनाया गया क्योंकि उस समय नागा साधुओं को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा था। उनके समूह को ‘अखंड’ कहा जाता था, और इसी शब्द से ‘अखाड़ा’ शब्द उत्पन्न हुआ। इस प्रकार, अखाड़ा शब्द सीधे उन साधुओं की एकता और निरंतरता से जुड़ा हुआ है।
अखाड़ों का इतिहास
अखाड़े भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा रहे हैं, जिनका उत्पत्ति का इतिहास भी बहुत पुराना है। अखाड़े उस समय अस्तित्व में आए जब हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों के साधु-संतों ने समूह के रूप में अपनी धार्मिक उद्देश्य पूरे करने शुरू किए थे। माना जाता है कि अखाड़ों की स्थापना लगभग 5000 साल पहले हुई थी, जब संतों और साधुओं ने समूह के रूप में अपने धार्मिक उद्देश्य पूरे करना शुरू किया।
महाकुंभ में अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य समाज में संतुलन और एकता बनाए रखना होता है, साथ ही धार्मिक अनुष्ठान, तपस्या और आत्मा की पवित्रता को बनाए रखना भी है। समय के साथ, इन अखाड़ों ने अपने धार्मिक परंपराओं, भव्य जुलूसों (पेशवाई), और पवित्र स्नान की प्रक्रिया के माध्यम से महाकुंभ मेला के महत्व को और बढ़ाया है।
अखाड़ों की संरचना और भूमिका
महाकुंभ में 13 प्रमुख अखाड़े भाग लेते हैं, जो सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें शैव, वैष्णव और उदासी संप्रदाय प्रमुख हैं। प्रत्येक अखाड़े का अपना विशिष्ट धार्मिक उद्देश्य, परंपरा और आचार-व्यवहार होता है।
अखाड़े की संरचना में विभिन्न पद होते हैं, जिनमें आचार्य महामंडलेश्वर (अखाड़े के सर्वोच्च नेता), महामंडलेश्वर (वह नेता जो साधुओं को मार्गदर्शन प्रदान करता है), और श्रीमहंत (वह व्यक्ति जो अखाड़े के प्रशासनिक कार्यों का संचालन करता है) शामिल हैं। इन पदों के माध्यम से अखाड़े अपने धार्मिक कार्यों और गतिविधियों का संचालन करते हैं।
नागा साधुओं का आगमन और महत्व
नागा साधु विशेष रूप से शैव संप्रदाय से जुड़े होते हैं और वे अपनी कठोर तपस्या और ध्यान के लिए प्रसिद्ध होते हैं। नागा साधु महाकुंभ में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

