
Supreme Court ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें एक दलित पिता और गैर-दलित मां के बच्चों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र देने का आदेश दिया गया है। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए लिया। अदालत ने एक गैर-दलित महिला और दलित पुरुष के बीच शादी को निरस्त कर दिया, और दोनों बच्चों को अनुसूचित जाति का लाभ देने की बात की।
Supreme Court का महत्वपूर्ण फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि किसी गैर-दलित महिला की शादी एक दलित पुरुष से होती है, तो उसकी जाति बदल नहीं सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में बच्चों को अनुसूचित जाति (SC) का प्रमाणपत्र मिलेगा, अगर उनके पिता दलित समुदाय से हैं। यह निर्णय उन बच्चों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो पिछले छह वर्षों से अपनी मां के साथ रह रहे थे और जिनके पिता दलित समुदाय से थे।

न्यायमूर्ति सुर्यकांत और उझ्जल भुइयां की बेंच ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सुर्यकांत और न्यायमूर्ति उझ्जल भुइयां की बेंच ने इस मामले पर निर्णय देते हुए कहा कि गैर-दलित महिला अपनी शादी से अनुसूचित जाति समुदाय की सदस्य नहीं बन सकती, लेकिन अगर उसकी संतानें एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति से होती हैं, तो उन्हें अनुसूचित जाति का लाभ मिलेगा। कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही है और इस पर कोई विवाद नहीं है कि जाति जन्म के आधार पर तय होती है और शादी से जाति नहीं बदल सकती।

शादी से जाति में बदलाव नहीं होता
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि जाति शादी से नहीं बदल सकती। यह कोर्ट का पहले भी कई बार जिक्र किया गया है, और 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर ही होता है, न कि शादी के आधार पर। यानी यदि कोई व्यक्ति दलित समुदाय से है और उसकी शादी गैर-दलित से होती है, तो उसकी जाति और परिवार की जाति में कोई बदलाव नहीं आएगा।
बच्चों को मिलेगा SC का टैग
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्णय लिया कि इस मामले में बच्चे, जिनकी उम्र 11 और 6 वर्ष है, अनुसूचित जाति के सदस्य माने जाएंगे। कोर्ट ने आदेश दिया कि दोनों बच्चों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र प्रदान किया जाएगा, ताकि वे सरकारी शिक्षा संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ उठा सकें। यह फैसला उन बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया, जिनके लिए यह अवसर सरकारी संस्थाओं में भागीदारी और विकास के नए रास्ते खोल सकता है।
रायपुर में रहने वाली मां के पास छह साल से रह रहे बच्चे
बताया जा रहा है कि दोनों बच्चे पिछले छह साल से अपनी मां के साथ रायपुर में उनके नाना-नानी के घर रह रहे हैं। यह मामला तब सामने आया जब बच्चों की जाति से जुड़ा सवाल उठाया गया। हालांकि, उनके पिता का जाति प्रमाणपत्र अनुसूचित जाति से था, लेकिन बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब बच्चों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र मिलने से वे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकेंगे।
आवेदन और भर्ती में SC का अधिकार
Supreme Court ने यह निर्णय भी दिया कि बच्चों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित श्रेणी में माना जाएगा, जिसका मतलब है कि उन्हें सरकारी शिक्षा संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलेगा। यह निर्णय सरकारी शिक्षा और रोजगार के अवसरों के मामले में उनके लिए अहम साबित होगा। इसके जरिए इन बच्चों को वे अवसर मिल सकते हैं, जिनकी तलाश में उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था।
जाति आधारित आरक्षण का महत्व
भारत में जाति आधारित आरक्षण एक संवैधानिक व्यवस्था है, जिसे समाज के आर्थिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से पिछड़े वर्गों को समान अवसर देने के लिए लागू किया गया है। यह व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत दी गई है, जो समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ है कि जाति का निर्धारण जन्म से होता है और समाज के कमजोर वर्गों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, भले ही उनकी मां की जाति अलग क्यों न हो।
जातिवाद और कानून: समाज में बदलाव की दिशा
Supreme Court का यह निर्णय समाज में जातिवाद से जुड़े कई सवालों पर स्पष्टता लाता है। हालांकि यह निर्णय विशेष रूप से एक परिवार के बच्चों से संबंधित था, लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव भारतीय समाज में जातिवाद और आरक्षण की व्यवस्था पर पड़ सकते हैं। इस निर्णय ने यह संदेश दिया है कि समाज में जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए कानूनी और संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्पष्टता दी है कि यदि किसी दलित व्यक्ति से गैर-दलित महिला की शादी होती है, तो उनकी संतानें अनुसूचित जाति का लाभ प्राप्त करने के योग्य होंगी। यह निर्णय न केवल बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भारतीय समाज में जातिवाद और आरक्षण की व्यवस्था में भी एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह फैसला उस समय आया है जब समाज में जातिवाद को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, और सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इस दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

